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88... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के ......
अपनी वैराग्य भावना का निवेदन करे, गुरु महाराज वैराग्य का कारण पूछे, योग्यता की परीक्षा करे, सामायिकादि सूत्र मुखाग्र करवाये। उसके बाद विधिपूर्वक दीक्षा प्रदान करें इत्यादि विवेचन मिलता है । यहाँ विस्तार भय से इन बिन्दुओं का स्पष्टीकरण नहीं कर रहे हैं। दीक्षा के योग्य शुभदिन विचार
उत्तम कार्यों की सिद्धि के लिए निमित्त की शुद्धि देखना ज्योतिषशास्त्र का अभिन्न अंग है। निमित्त शुद्धि एक प्रसन्नता भरा वातावरण निर्मित करती है और विविध कार्यों की सिद्धि के लिए मुख्य आधारभूत बनती है। व्रतग्राही का आत्मिक उत्साह बढ़ता रहे इस ध्येय से भी निमित्तशुद्धि अवश्य देखनी चाहिए। कहा भी है 'उत्साह प्रथमं मुहूर्त्तम्' अर्थात शुभमुहूर्त, शकुन आदि से भी बलवान् निमित्त उत्साह है। श्रेष्ठ कार्य की निर्विघ्नता हेतु क्षेत्र, काल और दिशा शुद्धि भी अनिवार्यतः देखी जानी चाहिए ।
दीक्षा योग्य प्रशस्त - अप्रशस्त क्षेत्र - विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार गन्ने के वन में, पके हुए धान्य क्षेत्र में, कमल - सरोवर युक्त उद्यान आदि में, प्रतिध्वनि वाले स्थल में, पानी प्रदक्षिणा देता हो उस जलाशय के समीप में या जिनमन्दिर में दीक्षा देनी चाहिए | 55 श्रुत आदि सामायिक देने के लिए ये क्षेत्र प्रशस्त हैं। इनके अतिरिक्त खण्डहरभूमि, दग्धभूमि, श्मशान, शून्यगृह, अमनोज्ञगृह और क्षार, अंगार, अभेद्य आदि निकृष्ट द्रव्यों से युक्त स्थानसामायिक आदान-प्रदान करने हेतु अप्रशस्त माने गये हैं। आगम परम्परा से तीर्थङ्कर परमात्मा विद्यमान हों, तो दीक्षादान की क्रिया समवसरण में की जाती है। उसके अभाव में यह विधि जिनालय के मण्डप में सम्पन्न की जाती है। वर्तमान परम्परा में अधिकांशतः दीक्षामण्डप तैयार करवाकर समवसरण का प्रतीक रूप त्रिगड़े में चौमुखी प्रतिमा विराजित करते हैं और उसके समक्ष दीक्षा दिलवायी जाती है। यह विधान श्वेताम्बर मूर्तिपूजक - परम्परा में प्रचलित है। दीक्षा के ग्राह्य और वर्जनीय नक्षत्र स्थानांगसूत्र, समवायांगसूत्र, विशेषावश्यकभाष्य, गणिविद्या आदि के अनुसार सर्वविरति सामायिक ग्रहण के लिए ज्ञानवृद्धिकारक निम्न दस नक्षत्र श्रेष्ठ माने गये हैं 56 1. मृगशिर, 2. आर्द्रा, 3. पुष्य, 4. पूर्वाभाद्रपद, 5. पूर्वाफाल्गुनी, 6. पूर्वाषाढ़ा, 7. मूल, 8. आश्लेषा, 9. हस्त और 10. चित्रा। इसी क्रम में धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति,
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