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84...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... के पालन से जीवन में मैत्री, करुणा, परस्पर सहयोग, निर्भयता, नैतिकता, सन्तोष आदि गुणों का संचार होता है जिससे आन्तरिक आनन्द की अनुभूति होती है। मानसिक रूप में स्वस्थ व्यक्ति ही शारीरिक एवं बौद्धिक स्वस्थता को प्राप्त कर सकता है। परिग्रह आदि न होने से जीवन चिन्तामुक्त रहता है। उससे व्यक्ति सम्यक चिन्तन में प्रवृत्त हो समाज के लिए कल्याणकारी बन सकता है।
यदि शारीरिक एवं वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में चिन्तन करें तो आहार की सात्त्विकता एवं नियन्त्रण होने से रोग उत्पत्ति प्राय: नहीं होती है। विहार आदि क्रिया से शरीर हल्का, स्वस्थ एवं सन्तुलित रहता है। अनशन, ऊनोदरी आदि तप से शारीरिक तन्त्रों में सञ्चित वसा (Fat) आदि का उपयोग हो जाता है जिससे मोटापा नहीं बढ़ता।
वैज्ञानिक शोधों के अनुसार नियमित तप-त्याग से आयु में वृद्धि होती है। सद्गुरु समागम के द्वारा विनय, सरलता आदि गुणों का उद्भव होने से पिट्यूटरी ग्रन्थि आदि का स्राव सन्तुलित होता है, जिससे बौद्धिक क्षमता उजागर होती है। ___ व्यक्तिगत स्तर पर विचार किया जाए तो दीक्षा लेने वाले के जीवन में कर्तृत्व बुद्धि का नाश एवं समर्पण का उदय होता है। एकाग्रता में वृद्धि होती है। आलस्य आदि नहींवत होने से सृजनात्मक कार्यों में शक्ति का प्रयोग होता है। सामाजिक स्तर पर धर्म की प्रतिष्ठा होती है। देखने वालों के मन में भी सद्विचार एवं तप-त्याग के भावों का प्रकटीकरण होता है। समाज में एकता, स्नेह एवं सद्भाव की स्थापना होती है। संयम एवं नियन्त्रण की महिमा स्थापित होती है। दीक्षित मनि दशविध सामाचारी के माध्यम से समाज में आपसी प्रेम एवं सौहार्द की प्रेरणा देता है। कई जीवों को सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है तो कई जीव वैराग्यवासित होते हैं।
यदि हम प्रबन्धन के परिप्रेक्ष्य में दीक्षा की मूल्यवत्ता का अंकन करें तो कहा जा सकता है कि संयम ग्रहण में कषाय, वाणी एवं तनाव प्रबन्धन आदि के तथ्य भी अन्तर्निहित हैं। संयमी जीवन नियन्त्रित होता है उसमें प्रत्येक कार्य की एक सीमा होती है, जिसके कारण अति का उल्लंघन नहीं होता। प्रत्येक क्रिया समय के अनुसार होती है "काले कालं समायरे"। अत: समय नियोजन का यह सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। समयानुसार प्रत्येक क्रिया होने से अन्य