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68...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के.....
4. स्वप्ना - विशेष प्रकार का स्वप्न आने पर ली जाने वाली दीक्षा. जैसे - पुष्पचूला स्वप्न में नरक की दारुण वेदना देखकर विरक्त हुई और आचार्य अर्णिकापुत्र के समीप जाकर दीक्षा ग्रहण की।
5. प्रतिश्रुता - पहले की गयी प्रतिज्ञा के कारण या आवेश में आकर ली जाने वाली दीक्षा, जैसे- शालिभद्र के जीजाजी धन्ना सेठ ने आवेश में आकर दीक्षा स्वीकार की।
6. स्मारणिका - जन्मान्तरों की स्मृति होने पर या किसी के द्वारा कुछ कहने या कोई दृश्य देखने से ली जाने वाली दीक्षा, जैसे- मल्लिकुमारी द्वारा पूर्वभव का स्मरण करवाने पर प्रतिबुद्ध हो छह राजकुमारों ने दीक्षा धारण की।
7. रोगिणिका - रोग का निमित्त मिलने पर या रोग के कारण संसार से विरक्ति हो जाने पर ली जाने वाली प्रव्रज्या, जैसे - सनत्कुमार चक्रवर्ती ने अचानक रोगग्रसित हो जाने के कारण अथवा नमिराजर्षि ने बीमारी में एकत्व भावना का चिन्तन करते हुए दीक्षा धारण की। ___8. अनादृता – किसी के द्वारा अपमानित होने पर ली जाने वाली दीक्षा, जैसे- नन्दिषेण ने अन्य द्वारा तिरस्कृत होकर दीक्षा ली।
9. देवसंज्ञप्ति - देव के द्वारा प्रतिबुद्ध होकर ली जाने वाली दीक्षा, जैसे - चाण्डालिनी के पुत्र मेतार्य ने पूर्वभव के मित्रदेव की प्रेरणा पाकर दीक्षा अंगीकार की।
10. वत्सानुबन्धिका - दीक्षित होते हुए पुत्र के निमित्त से ली जाने वाली दीक्षा, जैसे- वज्रस्वामी की माता सुनन्दा ने पुत्र स्नेह के कारण दीक्षा ग्रहण की। ___ इनके अतिरिक्त स्थानांगसूत्र में अन्य कारणों से भी प्रव्रज्या ग्रहण करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे निम्न हैं35_ ___ 1. इहलोक प्रतिबद्धा - इहलौकिक सुखों की प्राप्ति के लिए ली जाने वाली दीक्षा।
2. परलोक प्रतिबद्धा - पारलौकिक सुखों की प्राप्ति के लिए ली जाने वाली दीक्षा।
3. उभयतः प्रतिबद्धा - दोनों लोकों के सुखों की प्राप्ति के लिए ली जाने वाली दीक्षा।
प्रव्रज्या अंगीकार के तीन प्रकार निम्नोक्त भी हैं36_