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64... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग
हो । 5. जिसका पेशाब शब्दयुक्त एवं झाग रहित हो ।
2. वातिक - मुकुलित लिंग वाला अर्थात जिसका पुरुष चिह्न स्त्री संयोग के बिना सहज न हो सके, वह वातिक कहलाता है।
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3. क्लीब - असमर्थ, अशक्त अथवा स्त्री को देखते ही जिसका वीर्य स्खलित हो जाये वह क्लीब कहलाता है। इसके चार प्रकार कहे गए हैं -
1. दृष्टिक्लीब निर्वस्त्र स्त्री-पुरुष को देखकर क्षुब्ध होने वाला। 2. शब्दक्लीब - स्त्री का शब्द सुनकर क्षुब्ध होने वाला। 3. आश्लिष्टक्लीबस्त्री द्वारा बलात आलिंगन करने पर व्रत पालन में असमर्थ हो । 4. निमन्त्रणक्लीब- स्त्री द्वारा भोग की याचना करने पर शिथिल होने वाला।
4. कुम्भी - जिसका पुरुष चिह्न मोह - वासना की उत्कृष्टता के कारण कुम्भ की तरह 'उच्छून' हो अथवा जिसके अण्डकोष वीर्य पतन के समय कुम्भी के समान अतिस्थूल हों, वह दीक्षा के अयोग्य कहा गया है।
5. ईर्ष्यालु - जो कामित स्त्रियों के द्वारा पर-पुरुष के साथ आलाप एवं दर्शन मात्र से ही ईर्ष्या करने वाला हो ।
6. शकुनि - पक्षियों की तरह बार-बार मैथुन सेवन करने वाला हो । 7. तत्कर्मसेवा – जो पुरुषोचित समस्त प्रकार के व्यापारिक कार्यों को छोड़कर केवल स्त्री सम्भोग में रत रहता हो और भोजन आदि सभी स्थितियों में सम्भोग की कामना करता हो ।
8. पाक्षिक अपाक्षिक जो शुक्लपक्ष कृष्णपक्ष में अल्प कामोत्तेजना वाला हो ।
9. सौगन्धिक - जो पुरुष चिह्न को सुगन्धित मानकर हमेशा सूंघता हो । 10. आसक्त जो वीर्यपात के पश्चात भी स्त्री के शरीर का आलिंगन करने वाला हो।
पूर्वोक्त 10 प्रकार के नपुंसक नगर के महादाह के समान तीव्र कामोत्तेजना वाले तथा संक्लिष्ट चित्त वाले होने से दीक्षा के लिए अयोग्य हैं।
जैनागमों में नपुंसक के सोलह प्रकार निर्दिष्ट हैं उनमें दीक्षा के लिए दस अयोग्य और शेष छह भेद दीक्षा योग्य बतलाए गए हैं, जो निम्न हैंदीक्षा योग्य नपुंसक
1. वर्द्धितक – जिस व्यक्ति का पुरुषचिह्न अन्तःपुर की रक्षा के लिए
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में अधिक कामोत्तेजना वाला एवं