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38...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता जाता है और नैवेद्य-फल आदि अर्पित कर प्रत्येक दिक्पाल की पृथक्-पृथक् स्थापना की जाती है। दिक्पालों का आह्वान करते समय दोनों हाथ अंजलिमुद्रा में और मुख उस-उस दिशा की ओर किया जाना चाहिए। दशदिक्पाल आह्वान के मन्त्र निम्नोक्त हैं20
पूर्व दिशा के स्वामी इन्द्रदेवता का आह्वान मन्त्र ॐ हीं इन्द्राय सायुधाय, सवाहनाय, सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छआगच्छ स्वाहा।
आग्नेयकोण के स्वामी अग्निदेवता का आह्वान मन्त्र ____ॐ हीं अग्नये सायुधाय, सवाहनाय, सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।
दक्षिण दिशा के स्वामी यमदेवता का आह्वान मन्त्र ____ॐ हीं यमाय सायुधाय, सवाहनाय, सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छआगच्छ स्वाहा।
नैऋत्यकोण के स्वामी नैऋत्यदेवता का आह्वान मन्त्र ॐ हीं नैऋतये सायुधाय, सवाहनाय, सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।
पश्चिमदिशा के स्वामी वरुणदेवता का आह्वान मन्त्र ॐ ह्रीं वरुणाय सायुधाय, सवाहनाय, सपरिजनाय- इह नन्द्यां आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।
___वायव्यकोण के स्वामी वायुदेवता का आह्वान मन्त्र ____ॐ ह्रीं वायवे सायुधाय, सवाहनाय, सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छआगच्छ स्वाहा।
उत्तरदिशा के स्वामी कुबेरदेवता का आह्वान मन्त्र ॐ ह्रीं कुबेराय सायुधाय, सवाहनाय, सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।
ईशानकोण के स्वामी ईशानदेवता का आह्वान मन्त्र ॐ ह्रीं ईशानाय सायुधाय, सवाहनाय सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।
ऊर्ध्वदिशा के स्वामी ब्रह्मदेवता का आह्वान मन्त्र