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________________ विषयानुक्रमणिका अध्याय - 1 : जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि 1-62 श्रावक शब्द का अर्थ विचार • जैन शास्त्रों में श्रावक के विभिन्न नाम • श्रावक का यथार्थ लक्षण • श्रावकत्व की प्राप्ति का हेतु • जैन धर्म में साधना के स्तर • श्रमण और गृहस्थ की साधना में अन्तर • जैनधर्म में गृहस्थ साधना का महत्त्व • गृहस्थ उपासक का साधनाक्रम • गृहस्थ साधकों के विभिन्न स्तर • गृहस्थ साधकों के भेद • गृहस्थ श्रावक के अन्य प्रकार • गृहस्थ धर्म की प्राथमिक योग्यता • गृहस्थ धर्म की साधना के प्राथमिक नियम • सप्तव्यसन का त्याग जरूरी क्यों ? श्रावक के अनिवार्य कर्त्तव्य - 1. सामान्य कर्त्तव्य 2. दैनिक कर्त्तव्य 3. संध्याकालीन कर्त्तव्य 4. रात्रिकालीन कर्त्तव्य 5. चातुर्मासिक कर्त्तव्य 6. बृहद् कर्त्तव्य 7. पर्यूषण सम्बन्धी कर्त्तव्य 8. वार्षिक कर्त्तव्य । श्रावक के दैनिक षट्कर्म- • श्रावक के तीन मनोरथ • श्रावक की दिनचर्या का प्राचीन स्वरूप • श्रावकाचार और पर्यावरण सम्यक्त्वादि व्रतों का स्वरूप, महत्त्व एवं उसके उद्देश्य • सम्यक्त्वादि व्रतग्रहण करने का अधिकारी • सम्यक्त्वादि व्रतग्रहण की आवश्यकता क्यों ? • व्रत ग्रहण करने के विभिन्न विकल्प • श्रावक द्वारा नवकोटिपूर्वक प्रत्याख्यान सम्बन्धी अपवाद • व्रतधारी के लिए करणीय • व्रतधारी के लिए अकरणीय • व्रतग्राहियों के लिए अभिग्रहदान विधि • उपसंहार • सन्दर्भ सूची । अध्याय-2 : सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक · अध्ययन 63-135 सम्यग्दर्शन शब्द का अर्थ • सम्यग्दर्शन का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ • सम्यग्दर्शन के अर्थों की विकास यात्रा • सम्यग्दर्शन का लक्षण • जैन साहित्य में मिथ्यात्व का स्वरूप एवं प्रकार • सम्यग्दर्शन प्राप्ति के हेतु
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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