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446... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... उपासकप्रतिमा धारण की मूल विधि
सामान्यत: यह विधि बारहव्रतारोपणसंस्कार-विधि के समान की जाती है, केवल व्रतग्रहण के पाठ अलग होते हैं। सुगमबोध के लिए वह संक्षेप में इस प्रकार है
__ खरतरगच्छीय आचारदिनकर के अनुसार85 सर्वप्रथम शुभमुहूर्त के दिन प्रतिमाग्राही श्रावक जिनमन्दिर में या समवसरण (त्रिगड़ा) में विराजित जिनप्रतिमा की पूजा करें। फिर नमस्कारमन्त्र के स्मरणपूर्वक समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें। फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। तदनन्तर एक खमासमणसूत्रपूर्वक वंदन करके प्रथम दर्शनप्रतिमा को ग्रहण करने के निमित्त गुरू के साथ देववन्दन करें। उसके बाद प्रतिमाग्राही श्रावक द्वारा निवेदन किए जाने पर गुरू उसके मस्तक पर वासचूर्ण का निक्षेप करें। पुन: एक खमासमणसूत्र पूर्वक दर्शनप्रतिमा ग्रहण करने के निमित्त सत्ताईस श्वासोश्वास-परिमाण लोगस्ससूत्र का चिन्तन (कायोत्सर्ग) करें। उसके पश्चात् दर्शनप्रतिमा ग्रहण करने एवं करवाने के लिए गुरू से निवेदन करें। तब गुरू तीन बार नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए निम्न दंडक या आलापक का तीन बार उच्चारण करवाएँ और प्रतिमा ग्रहण का पाठ प्रतिमाग्राही श्रावक को दर्शनप्रतिमा में स्थापित करें। दंडक इस प्रकार है
"अहन्नं भंते तुम्हाणं समीवे मिच्छत्तं दव्वभावभेयभिन्नं पच्चक्खामि दंसणपडिमं उवसंपज्जामि नो मे कप्पई अज्जपभिई अन्नउत्थिय देवयाणि वा, अन्नउत्थियपरिग्गहिआणि वा, अर्हतचेइयाणि वा वंदित्तए वा, नमंसित्तए वा, पुव्विअणालत्तेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा, दाउं वा अणुप्पयाउं वा तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तहा अईयं निंदामि पडुप्पन्नं संवरेमि अणागयं पच्चक्खामि अरिहंतसक्खियं सिद्धसक्खियं, साहुसक्खियं देवसक्खियं गुरूसक्खियं अप्पसक्खियं वोसिरामि। तहा दव्वओ, खित्तओ कालओ, भावओ, दव्वओणं एसा दंसणपडिमा, खित्तओणं इहेव वा अन्नत्थ वा, कालओणं जावमासं, भावओणं जाव गहेणं न गहिज्जामि, जाव छलेणं न छलिज्जामि जाव सन्निवाएणं नाभिभविज्जामि ताव मे एसा दंसण पडिमा।"
भावार्थ- हे भगवन् ! मैं आपके समक्ष द्रव्य एवं भावरूप मिथ्यात्व का