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________________ 428... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... करता है, जबकि नियम प्रतिमाधारी श्रावक केवल पाँच माह के लिए सचित्त जल का त्याग करता है। दिगम्बर परम्परा में पाँचवीं प्रतिमा का नाम 'सचित्तत्याग' है। रत्नकरण्डकश्रावकाचार26, कार्तिकेयानुप्रेक्षा27, वसुनन्दिश्रावकाचार28 आदि में उल्लेख है कि जो कच्चे मूल, फल, शाक, सचित्त जल और नमक आदि का सेवन नहीं करता है, वह सचित्त त्यागी प्रतिमाधारी है। सागारधर्मामृत में पूर्वोक्त चार प्रतिमाओं का पालक सचित्त त्यागी माना गया है। सामान्यत: सचित्त त्याग की प्रतिज्ञा पाँच माह के लिए धारण की जाती है। यदि इच्छा हो तो आजीवन के लिए भी सचित्त वस्तु का त्याग किया जा सकता है। 6. ब्रह्मचर्य प्रतिमा- ब्रह्मचर्य का अर्थ है-ब्रह्म यानी आत्मा, चर्य यानी विचरण करना अर्थात आत्मस्वभाव में विचरण करना अथवा शीलव्रत का पालन करना। श्वेताम्बर परम्परानुसार छ: माह के लिए मैथुनसंज्ञा का सर्वथा त्याग करना ब्रह्मचर्यप्रतिमा है। दिगम्बर परम्परा में छठवीं प्रतिमा का नाम 'रात्रिभुक्तित्याग' है। इस प्रतिमा में स्थित साधक रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करता है। उपासकाध्ययन और चारित्रसार के अनुसार दिन में बह्मचर्य का पालन करना रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा है।29 यहाँ ब्रह्मचर्य और रात्रिभुक्तित्याग ये दोनों बातें एक अर्थ में लागू नहीं होती है, फिर भी ब्रह्मचर्य पालन को रात्रिभुक्तित्याग की संज्ञा देने का यह कारण कहा जा सकता है कि इस प्रतिमा का सम्बन्ध उपभोग परिभोग परिमाणव्रत से है। उपभोग योग्य पदार्थों में सबसे प्रधान वस्त् 'स्त्री' मानी गई है। इस दृष्टि से ब्रह्मचर्य और रात्रिभुक्ति-ये दोनों सम अर्थ में भी घटित हो जाते हैं और इसी अपेक्षा से इस प्रतिमा के ब्रह्मचर्य और रात्रिभुक्तित्याग ये दो नाम दिए गए हैं। इसी कारण ब्रह्मचर्य पालन को रात्रिभुक्तित्याग भी कहा गया है। ___7. सचित्तत्याग प्रतिमा- सचित्तत्याग का अर्थ है-जीव या बीज युक्त वस्तु को ग्रहण नहीं करना। इस परिभाषा के अनुसार पूर्वोक्त प्रतिमाओं के नियमों का यथावत् पालन करते हुए सभी प्रकार की सचित्त वस्तुओं का त्याग कर देना एवं उष्ण जल तथा अचित्त आहार का ही सेवन करना सचित्तत्याग
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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