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400... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
इतना पद अधिक बोलते हैं। यहाँ साधु शब्द का तात्पर्य श्रावक से है। उसके बाद मालाग्राहीजन कहें- 'इच्छामो अणुसट्ठि' ।
4. पुनः मालाग्राही एक खमासमणपूर्वक निवेदन करें- 'तुम्हाणं पवेइयं, संदिसह साहूणं पवेएमि । " गुरु बोले- 'पवेयह । '
5. तदनन्तर मालाग्राही एक खमासमण देकर प्रतिदिशा में एक-एक नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए नन्दीरचना के चारों ओर तीन प्रदक्षिणा दें। 166 प्रदक्षिणा के समय गुरू एवं चतुर्विध संघ उन पर वास - अक्षत का निक्षेप करें।
6. उसके बाद मालाग्राही एक खमासमणपूर्वक कहें- "तुम्हाणं पवेइयं, साहूणं पवेइयं, संदिसह काउस्सग्गं करेमि । " गुरू बोले- 'करेह । '
7. तदनन्तर एक खमासमण देकर शिष्य- 'पढमंडवहाणं- पंचमंगलहासुयक्खंधं, बियंउवहाणं-पडिक्कमणसुयक्खंधं, तइयंउवहाणंपंचमंउवहाणं
चउत्थंउवहाणं-ठवणारिहंतत्थय,
भावारि - हंतत्थय, चउवीसत्थय, छटुंउवहाणं- नाणत्थय, सत्तमंउवहाणं- सिद्धत्थय, अणुन्नानिमित्तं करोमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र' बोलकर लोगस्ससूत्र का 'सागरवरगंभीरा' तक चिन्तन करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें।
तदनन्तर मालाग्राही एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन् ! पवेयणा मुहपत्तिं पडिलेहेमि ?" गुरू बोले- 'पडिलेहेह ।' उसके बाद मालाग्राही ‘इच्छं’ बोलते हुए मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना पूर्वक दो बार द्वादशावर्त्तवन्दन करें।
• फिर एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. तुम्हे अम्हं पढमंउवहाणंपंचमंगलमहासुयक्खंधं, बियंउवहाणं पडिक्कमणसुयक्खंधं, तइयंउ - वहाणं- भावारिहंतत्थय, चउत्थंउवहाणं ठवणारिहंतत्थय, पंचमंडवहाणंचडवी - सत्थय, छट्ठउवहाणं- नाणत्थय, सत्तमंउवहाणं- सिद्धत्थय समुद्देसअणुन्नानंदी मालापडिग्गहणत्थं तवं करावेह " - हे भगवन् ! आप मुझे इच्छापूर्वक उपधान योग्य सूत्रों का समुद्देश एवं अनुज्ञानंदी के निमित्त मालाधारण करने के लिए तप का प्रत्याख्यान करवाईए। तब गुरू बोलें - ' करावेमो । '
उसके बाद मालाग्राहीजन एक खमासमण देकर निवेदन करें - 'इच्छकारि भगवन् ! पसाय करी पच्चक्खाण करावोजी', तब गुरू उपवास या