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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...397 उवहाणं- चउवीसत्थय, छटुंउवहाणं-नाणत्थय, सत्तमंउवहाणं- सिद्धत्थय समुद्दिट्ठो?"- हे भगवन् ! आपने इच्छापूर्वक मुझे पंचमंगल आदि सप्तोपधान के सूत्रों को सम्यक् प्रकार से चिर-परिचित करने की अनुमति प्रदान की है?' तब गुरू उपधानवाही के मस्तक पर वासचूर्ण का क्षेपण करते हुए कहें"समुट्ठिो- 3 खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं, अत्थेणं,तदुभयेणं थिरपरिचियं कायव्वं"- मेरे द्वारा उपधान योग्य सभी सूत्रों को सम्यक् प्रकार से समुदिष्ट किया गया है। अब महापुरूषों की परम्परा से प्राप्त सूत्र, अर्थ एवं सूत्रार्थ द्वारा इनको स्थिर-परिचित करना चाहिए। यानी इन सूत्रों को सम्यक् प्रकार से अवधारित करना चाहिए।' उसके बाद शिष्य कहें-'इच्छामो अणुसटुिं।' ___4. पुन: एक खमासमण देकर शिष्य निवेदन करें- 'तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि।' गुरू कहें- 'पवेयह'। ____5. तत्पश्चात् शिष्य ‘इच्छं' बोलकर एवं अर्द्धावनत होकर तीन बार नमस्कारमन्त्र बोलते हैं।
6. पुन: एक खमासमण देकर शिष्य कहें-'तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि'। गुरू कहे-'करेह।' ___7. उसके बाद 'इच्छं' बोलकर, एक खमासमण देकर शिष्य कहे"पढमंउवहाणं- पंचमंगलमहासुयक्खंधं, बियंउवहाणं-पडिक्कमणसुयक्खंधं, तइयंउवहाणं- भावारिहंतत्थय, चउत्थंउवहाणं-ठवणारिहंतत्थय, पंचमंउवहाणं- चउवीसत्थय, छटुंउवहाणं-नाणत्थय, सत्तमंउवहाणंसिद्धत्थय समुद्देसनिमित्तं करेंमि काउस्सग्गं" पूर्वक 'अन्नत्थसूत्र' - कहकर कायोत्सर्ग में सागरवरगंभीरा तक लोगस्ससूत्र का चिन्तन करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें।
• तदनन्तर उपधानवाही दो खमासमणपूर्वक 'वायणं संदिसावेमि' 'वायणं पडिग्गहेमि', पुन: दो खमासमणपूर्वक 'बेसणं संदिसावेमि' 'बेसणं ठाएमि', पुनः दो खमासमण देकर 'सज्झायं संदिसावेमि' 'सज्झायं करेमि', पुनः दो खमासमण देकर 'पांगुरणं संदिसावेमि' 'पागुरणं पडिग्गहेमि'- इस प्रकार वाचना ग्रहण करने का, आसन पर बैठने का, स्वाध्याय करने का एवं कामली आदि ओढ़ने का आदेश लें। उसके बाद अविधि-आशातनाओं के लिए मिच्छामि दुक्कडं दें।