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________________ सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ... 245 भूमि स्पर्श करते हुए 'भयवंदसण्णभद्दो सूत्र' बोलें। 57 यदि पुस्तक आदि की स्थापना की हो, तो दाएं हाथ को उसके सम्मुख करते हुए तीन नमस्कारमन्त्र बोलें और उसके स्मरण - पूर्वक स्थापना को उत्थापित करें। तपागच्छ परम्परा में सामायिकग्रहण एवं सामायिकपारण विधि लगभग पूर्ववत् ही है। विशेष अन्तर यह है कि 1. यहाँ पुस्तक आदि की स्थापनाचार्य के रूप में स्थापना करनी हो, तो एक नमस्कारमन्त्र और 'पंचिंदियसंवरणो सूत्र' बोलते हैं। 2. खरतरगच्छ में पहले सामायिक लेने का पाठ बोलते हैं, फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करते हैं, जबकि तपागच्छ में पहले ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करते हैं, फिर सामायिकदंडक उच्चरते हैं। 3. खरतर परम्परा में सामायिकदंडक का उच्चारण करने से पूर्व नमस्कार मन्त्र एवं सामायिकदंडक तीन-तीन बार बोलते हैं, जबकि तपागच्छ परम्परा में नमस्कार मन्त्र एवं दंडक एक बार बोलते हैं। 4. खरतर सामाचारी के अनुसार सामायिक पूर्ण करते समय 'भयवंदसण्णभद्दो सूत्र' बोला जाता है, 58 किन्तु तपागच्छ परम्परा में ‘सामाइयवयजुत्तो’ नाम का पाठ बोलते हैं तथा सामायिकग्रहण-विधि के अन्त में ‘सज्झाय’ का आदेश लेकर तीन नमस्कारमन्त्र बोलते हैं। शेष विधि लगभग समान ही है। सायंकालीन प्रतिक्रमण में 'चउक्कसाय' का चैत्यवंदन करने के बाद सामायिक पूर्ण करते हैं। अचलगच्छ परम्परा में सामायिक ग्रहण एवं पारण विधि का स्वरूप यह है59_ 1. सर्वप्रथम नमस्कारमन्त्र एवं पंचिदियसूत्र ० ० पूर्वक पुस्तक आदि की स्थापना करते हैं। 2. फिर पूर्ववत् गुरूवन्दन करते हैं। 3. उसके बाद गमनागमन की आलोचना का आदेश लेकर 'गमनागमन' का पाठ बोलते हैं। 4. फिर एक खमासमणपूर्वक 'इच्छा. संदि.! सामायिक संदिसाहुं'
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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