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________________ सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ... 243 ईर्यापथिकप्रतिक्रमण विधि - • तदनन्तर एक खमासमणसूत्र पूर्वक ईर्यापथिक प्रतिक्रमण अर्थात ईरियावहि, तस्स उत्तरी ०, अन्नत्थसूत्र बोलकर चार नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। • उसके बाद वर्षावास का समय हो, तो एक खमासमण पूर्वक 'बइसणं संदिसावेमि'। पुनः एक खमासमण देकर 'बइसणं ठामि' बोलकर आसन पर बैठने का आदेश ग्रहण करें। • यदि चातुर्मास का समय न हो, तो पूर्ववत दो खमासमणपूर्वक 'पाउंछणं संदिसावेमि' 'पाउंछणं ठामि' कहकर पादप्रोंछन का आदेश लें। वर्तमान में 'पाउंछणं' का आदेश लेने की परम्परा नहींवत् है। • उसके पश्चात पूर्ववत दो खमासमण पूर्वक क्रमशः 'सज्झायं संदिसावेमि' 'सज्झायं करेमि' कहकर स्वाध्याय करने की अनुज्ञा ग्रहण करें और स्वाध्यायरूप में आठ नमस्कारमन्त्र का स्मरण करें। यहाँ तक सामायिकग्रहण की विधि पूर्ण हो जाती है। विधिमार्गप्रपा में सामायिकव्रत के सम्बन्ध में कुछ विशेष निर्देश हैं। जैसा कि कहा गया है यदि शीतकाल हो, तो पंगुरणं (ऊनी शाल ओढ़ने) का आदेश लेना चाहिए। वर्तमान में यह परम्परा नहींवत रह गई है, पौषधव्रत में आज भी 'पंगुरणं' का आदेश लेते हैं। यदि सन्ध्याकाल में सामायिक ग्रहण करनी हो, तो प्रथम स्वाध्याय का आदेश लें, फिर कटासन का आदेश लेना चाहिए। यहाँ प्रात:कालीन एवं सायंकालीन सामायिक की अपेक्षा 'सज्झाय' और 'कटासन' इन दो आदेशों में क्रम परिवर्तन का जो निर्देश किया गया है उसका मुख्य कारण क्या हो सकता है ? यह विद्वद्जनों के लिए अन्वेषणीय है। विधिप्रपा में यह भी सूचित किया गया है कि यदि कोई गृहस्थ सामायिक या पौषधव्रत ग्रहण करके बैठा हुआ है, उसे सामायिक या पौषध ग्रहण किया हुआ अन्य व्यक्ति वंदन करें (हाथ जोड़ें), तो उन्हें 'वंदामो' शब्द बोलना चाहिए। यदि सामायिक या पौषध ग्रहण नहीं किया हुआ व्यक्ति हाथ जोड़कर वंदन करें, तो व्रती को अव्रती से 'सज्झायं करेह' ऐसा कहना चाहिए। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि खरतरगच्छ की वर्तमान परम्परा में
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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