________________
226... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
संबोधसित्तरी प्रकरण में समभाव को मुक्ति का द्वार कहा है । से भावित हुई आत्मा ही मोक्ष को प्राप्त करती है।
निष्कर्ष रूप में सामायिक एक अमूल्य एवं विराट् साधना है। सामायिक से होने वाले लाभ
सामायिक एक विशुद्ध साधना है।
• गृहस्थ जीवन में इस सामायिकव्रत का बार-बार अभ्यास करने से आत्मा सर्वविरति अर्थात चारित्रधर्म के लिए योग्य बनती है।
समभाव
·
अहर्निश कम से कम एक सामायिक करने से शास्त्रवृत्ति, संतोषवृत्ति व समतावृत्ति का उत्तम अभ्यास होता है। इस सामायिक साधना के माध्यम से चित्तवृत्तियों के उपशमन का, माध्यस्थभाव में स्थिर रहने का, समस्त जीवों के प्रति समानवृत्ति का और सर्वात्मभाव का भी अभ्यास होता है।
• सामायिक में साधक की चित्तवृत्ति क्षीरसमुद्र की भाँति एकदम शान्त रहती है, इससे नवीन कर्मों का बन्ध नहीं होता है।
• आत्मस्वरूप में स्थित रहने के कारण जो कर्म शेष रहे हुए हैं, उनकी वह निर्जरा कर लेता है, इसीलिए आचार्य हरिभद्रसूरि ने लिखा है - सामायिक की विशुद्ध साधना से जीव घाती कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है। 27
• सामायिक का अभ्यासी साधक मन, वचन और काय को वश में कर लेता है।
• वह विषय-कषाय और राग-द्वेष से विमुक्त हुआ सदैव समभाव में स्थित रहता है।
• सामायिक अभ्यासी के अन्तर्मानस में विरोधी को देखकर न क्रोध की ज्वाला भड़कती है और न ही हितैषी को देखकर वह राग से आह्लादित होता है। वह समता के गहन सागर में डुबकी लगाता रहता है। वह न तो निन्दक से डरता है और न ही ईर्ष्याभाव से ग्रसित होता है । उसका चिन्तन सदा जागृत रहता है वह सोचता है कि संयोग और वियोग ये दोनों ही आत्मा के स्वभाव नहीं हैं। ये तो शुभाशुभ कर्मों के उदय का फल है। • समता का अभ्यास होते-होते मानसिक एवं वैचारिक बीमारियाँ भी दूर होने लगती हैं।