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________________ बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ... 201 दिगम्बर-परम्परा में देशावगासिक और पौषधव्रत को एक में मिला लिया गया है तथा उस रिक्त संख्या की पूर्ति संलेखना को व्रत में समावेश कर की गई है। इस प्रकार दोनों परम्पराओं में आंशिक मतभेद दृष्टिगत होता है। स्वरूपतः श्वेताम्बर - परम्परा के व्रतारोपण - संस्कार में सम्यक्त्वव्रत, बारहव्रत, सामायिकव्रत आदि गृहस्थ संबंधी छ: प्रकार के विधि-विधान समाहित किए गए हैं, जबकि दिगम्बर- परम्परा के व्रतावतरण संस्कार में हिंसादि पाँच पापों के त्याग को ही अन्तर्निहित किया गया है। 139 वैदिक-परम्परा में 'व्रतारोपण' नाम से किसी तरह की व्रतविधियों का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, केवल धर्मशास्त्रों में वेदव्रतों के सम्बन्ध में उल्लेख मिलते हैं। साथ ही संस्कार - संख्या में चार वेद-व्रत को भी स्थान दिया गया है। बहुत-सी स्मृतियों ने सोलह संस्कार में इनकी भी गणना की है। वह विवरण इस प्रकार है140 आश्वलायनस्मृति के अनुसार चार वेदव्रत ये हैं- 1. महानाम्नीव्रत 2. महाव्रत 3. उपनिषद् व्रत और 4. गोदान । आश्वलायनगृह्यसूत्र के अनुसार व्रतों में चौलकर्म से परिदान तक के सभी कृत्य, जो उपनयन के समय किए जाते हैं, प्रत्येक व्रत के समय दोहराए जाते हैं। शांखायनगृह्यसूत्र के अनुसार पवित्र गायत्री से दीक्षित होने के उपरान्त चार व्रत किए जाते थें यथा- शुक्रिय, शाक्वर, व्रातिक और औपनिषदिक । इनमें शुक्रियव्रत तीन या बारह दिन या एक वर्ष तक चलता था तथा अन्य तीन कम से कम वर्ष-वर्ष भर किए जाते थे। अन्तिम तीन व्रतों के प्रारम्भ में अलग-अलग उपनयन किया जाता था तथा इसके उपरान्त उदीक्षणिका नामक कृत्य किया जाता था। उद्दीक्षणिका का तात्पर्य है - आरम्भिक व्रतों को छोड़ देना। आरण्यक का अध्ययन गांव के बाहर वन में किया जाता था। मनु के अनुसार इन चारों व्रतों में प्रत्येक व्रत के आरम्भ में ब्रह्मचारी को नवीन मृगचर्म, यज्ञोपवीत एवं मेखला धारण करनी पड़ती थी । गोभिलगृह्यसूत्र में गोदानिक, व्रातिक, आदित्य, औपनिषद्, ज्येष्ठसामिक नामक व्रतों का वर्णन मिलता है। इनमें से प्रत्येक व्रत एक वर्ष तक चलता है। गोदानव्रत का सम्बन्ध गोदान - संस्कार से है। इस व्रताचरण काल में सिर, दाढ़ी-मूंछे मुंड़ा ली जाती है, झूठ, क्रोध, सम्भोग, नाच, गान, मधु, मांस, आदि का परित्याग किया जाता है और उस गांव में
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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