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________________ हृदय नाद भारतीय विचारधारा में व्रत-अनुष्ठान का सर्वाधिक मूल्य है। व्रत सार्वकालिक साधना है। यह वह धुरी है जिस पर अवस्थित हआ व्यक्ति भौतिक जगत से निरपेक्ष होकर आध्यात्मिक जगत में प्रवेश करता है। अध्यात्म साधना का प्रारम्भ व्रत से होता है और उसकी पूर्णता भी व्रत से ही होती है। सम्यक्त्व ग्रहण व्रत का प्रारम्भिक चरण है और यथाख्यात चारित्र की समुपलब्धि (कैवल्य की प्राप्ति) साधना का अन्तिम सोपान हैं। व्रत आत्मा का सौन्दर्य है, मोक्ष प्राप्ति का द्वार है, चैतन्य शक्ति के अनावरण का परम हेतु है और वीतराग पथ पर समारूढ़ हुए साधक के लिए चरम लक्ष्य की प्राप्ति का सेतु है। व्रत अनमोल तत्व है। चौरासी लाख जीव योनि के अनन्त जीवों में मनुष्य ही इसका आचरण कर सकता है। यही कारण है कि मानव देह से ही मोक्ष को संभव बतलाया है। ___ सुयोग्या साध्वी सौम्यगुणाजी ने गृहस्थ धर्म संबंधी व्रत-विधियों का न केवल प्रयोगात्मक स्वरूप प्रस्तुत किया है अपितु ऐतिहासिक, तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक दृष्टिकोण से उनका मूल्यांकन भी किया है। इसी के साथ व्रत विधियों का महत्त्व, उसकी उपादेयता आदि बिन्दुओं पर भी प्रकाश डाला है जो निःसन्देह इस शोधकृति को सर्वजन उपयोगी सिद्ध करता है। ____ मुझे आशा है कठिन पुरुषार्थ का यह कलेवर विद्वज्जनों द्वारा अनुशंसनीय, शोधार्थियों के लिए पठनीय एवं जन सामान्य के लिए अनुसरणीय रहेगा। साध्वी सौम्यगुणाजी का उत्साह एवं सम्यक पुरुषार्थ दिन ब दिन अभिवर्द्धित होता रहे तथा वे जिन शासन को साहित्य सेवा से लाभान्वित करती रहें, यही अन्त:करण की सद्भावना है। आर्या शशिप्रभा श्री
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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