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________________ बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...189 से खा-पीकर पाक्षिक पौषध किया था।124 इसी शतक में जयन्ती श्रमणोपासिका का भी उल्लेख है। उसके मकानों में श्रमण और श्रमणियाँ ठहरती थीं, इसलिए वह ‘शय्यातर' के रूप में विश्रुत थी। वह तत्त्वों के मर्म की ज्ञाता थी। उसने भगवान् महावीर से अनेक जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की थी। इस सूत्र में कार्तिक श्रेष्ठी द्वारा सौ बार पाँचवी प्रतिमा धारण करने का वर्णन आया है। इस तरह भगवती सूत्र में कई जगह श्रावक-आचार एवं श्रावक-जीवन पर चिन्तन किया गया है, परन्तु श्रावकों के व्रत और प्रतिमाओं पर स्वतन्त्र रूप से कोई विवरण प्राप्त नहीं होता है। इतना अवश्य संभव है कि ये श्रावक-श्राविकाएँ बारहव्रतधारी होने चाहिए। ज्ञाताधर्मकथासूत्र में श्रावक जीवन का वर्णन कथाओं के माध्यम से किया गया है, किन्तु उसमें भी पृथक् रूप से श्रावकधर्म का कोई विवेचन नहीं है। हमें पूर्ववर्ती आगम-ग्रन्थों की अपेक्षा सर्वप्रथम उपासकदशांगसूत्र में बारहव्रत-ग्रहण की विधि का प्रारम्भिक स्वरूप उपलब्ध होता है। इसमें भगवान महावीर के दस श्रावकों का जीवन चरित्र वर्णित है। उनमें सर्वप्रथम आनन्द श्रावक ने भगवान महावीर की वैराग्यामृत- वाणी को सुनकर बारहव्रत ग्रहण किए। अत: इसमें बारहव्रतों के आलापक, उनके अतिचार, ग्यारह प्रतिमाओं का स्वरूप और जीवन की अन्तिमवेला में संलेखना ग्रहण करने का वर्णन है।125 इससे सुनिश्चित है कि बारहव्रत आरोपण की विधि का प्रारम्भिक एवं अपेक्षित स्वरूप प्रथमत: उपासकदशा में ही उपलब्ध होता है। ___ अन्तकृत्दशासूत्र में सुदर्शन श्रेष्ठी का वर्णन है। वह श्रमणोपासक जीवाजीव का परिज्ञाता था परन्तु इस आगम में उसके द्वारा व्रत ग्रहण करने का उल्लेख नहीं मिलता है, तथापि एक श्रावक की जिनधर्म के प्रति कितनी गहरी निष्ठा होनी चाहिए? इसका सजीव चित्रण हुआ है।126 प्रश्नव्याकरणसूत्र में श्रावकधर्म की दृष्टि से कोई वर्णन नहीं है, फिर भी श्रावक-धर्म के मूल अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के महत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। अणुव्रतों का सही स्वरूप समझने के लिए यह वर्णन सर्चलाइट के समान है। विपाकसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध में सुबाहकुमार का वर्णन है। वह श्रावक के बारह व्रतों को ग्रहण करता है। इसके अतिरिक्त भद्रनन्दी, सुजात आदि कुमार
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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