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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...107
क्र. | आचार्य हरिभद्र आचार्य हेमचन्द्र आचार्य नेमिचन्द्र | पं.आशाधर
| द्वारा प्रतिपादित द्वारा प्रतिपादित द्वारा प्रतिपादित | द्वारा प्रतिपादित 28. | धर्म, अर्थ और | कृतज्ञ
काम की उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए प्रयत्न करना | मितव्ययी होना | लोकप्रिय(विनम्र) योग्य समय
| होना जानकर दान
देना 30. | प्रतिदिन धर्मश्रवण | लज्जाशील
करना अभिनिवेश करूणाशील (असत्आ ग्रह) का
त्याग करना |32. | गुण-पक्षपाती होना | सौम्य
| बुद्धि के आठ गुणों
से युक्त होना | परोपकारी | अजीर्ण होने पर क्रोधादि शत्रुओं
भोजन न करना । | का परिहार करना 35. | शक्ति संपन्न होने | इन्द्रियजयी (5) | पर भी प्रतिक्रिया न
करना सम्यक्त्वव्रत प्रदाता गुरू की योग्यताएँ
सम्यक्त्वव्रत प्रदान करने का अधिकारी कौन हो सकता है? इस विषय में आचार्य वर्धमानसूरि ने कहा है105-जो मुनि पंचमहाव्रतों से युक्त हो, पंचाचार का पालन करने में समर्थ हो, पाँच समिति और तीन गप्ति से युक्त हो और छत्तीस गुणों से समन्वित हो, साथ ही आगमों का ज्ञाता हो, मधुर वक्ता हो, गंभीर हो, बुद्धिमान् हो, उपदेशकुशल हो, परिश्रमी हो, सौम्य