________________
सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन
...99
शर्त है। व्यवहार से ही परमार्थ साधा जा सकता है। धर्म मार्ग का अनुसरण करने के पहले जीवन में व्यावहारिक एवं सामाजिक गुणों का प्रकटन होना अत्यावश्यक है। जैनाचार्यों ने इस तथ्य को सर्वाधिक प्राथमिकता दी है, अतः सम्यक्त्व व्रतग्राही के लिए कुछ योग्यताएँ अपेक्षित मानी गई हैं।
आचार्य हरिभद्रसूरि ने सम्यक्त्वव्रत ग्रहण के इच्छुक श्रावक की पूर्व योग्यताओं का विवरण देते हुए उसके पैंतीस गुणों का उल्लेख किया है, जो निम्नलिखित हैं- 1. न्याय - नीतिपूर्वक धनोपार्जन करना 2. समान कुल एवं समान शीलधर्मी के साथ विवाह करना 3. प्रत्यक्ष और परोक्ष आपत्तियों से सावधान रहना 4. शिष्टजनों के चारित्र की प्रशंसा करना 5. जितेन्द्रिय होना 6. उपद्रवकारी स्थान का वर्जन करना 7. स्वयं के योग्य व्यक्तियों का आश्रय लेना 8. गुणदर्शी होना 9. उचित स्थान पर गृह बनवाना 10. उचित वेशभूषा धारण करना 11. आय के अनुसार व्यय करना 12. देश में जो आचार प्रसिद्ध हो, उसका पालन करना 13. निन्दित कार्यों का त्याग करना 14. अवर्णवाद का त्याग करना 15. सत्पुरूषों की संगति करना 16. मातापिता की पूजा (सेवा) करना 17. सुखकारी प्रवृत्ति करना 18. स्व- आश्रितों का परिपालन करना 19. देव, अतिथि और दीनजनों की सेवा करना 20. यथासमय भोजन करना 21. अयोग्य देश और अयोग्य काल में गमन नहीं करना 22. यथोचित लोकयात्रा करना 23. अतिपरिचय का त्याग करना 24. व्रतधारी और ज्ञानी पुरूषों की सेवा करना 25. धर्म, अर्थ और काम- - पुरूषार्थ का उचित सेवन करना 26. धर्म, अर्थ और काम पुरूषार्थ में सामंजस्य बना रहे, उस तरह की प्रवृत्ति करना 27. स्वयं की शक्ति - अशक्ति का विचार कर नए कार्य का प्रारंभ करना 28. धर्म, अर्थ और काम की उत्तरोत्तर वृद्धि हेतु प्रयत्न करना 29. मितव्ययी होना 30. धर्मश्रवण करना 31. अभिनिवेश का त्याग करना 32. गुणपक्षपाती होना 33. बुद्धि के आठ गुणों से युक्त होना। 100 टीकाकार ने अजीर्ण होने पर भोजन नहीं करना और बलापाये प्रतिक्रिया-इन दो गुणों को भोजन के साथ संयुक्त कर पैंतीस गुणों का
निर्देश किया है।
आचार्य हेमचन्द्र ने उपर्युक्त योग्यताओं को 'मार्गानुसारीगुण' के नाम से उल्लिखित किया है और गृहस्थ-साधना में प्रवेश करने वाले साधक के