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50... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
• प्रतिदिन शक्रस्तवपूर्वक त्रिकाल चैत्यवंदन करना चाहिए। • छ: माह तक उभय सन्ध्याओं में विधिपूर्वक चैत्यवंदन करना चाहिए। • प्रतिदिन नमस्कारमंत्र की एक माला गिननी चाहिए।
• द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि पर्व तिथियों में यथाशक्ति बियासना आदि तप करना चाहिए।
• यावज्जीवन जागते एवं सोते समय चौबीस नमस्कार मंत्र गिनना चाहिए।
• वीतरागी-देव, निर्ग्रन्थ-गुरू एवं अहिंसामय-धर्म की उपासना करना चाहिए।
• प्रतिदिन पूजा करना चाहिए।76
• गीतार्थ परम्परा के अनुसार सामायिक आदि षडावश्यक विधि का पालन करना चाहिए।
• यथासंभव रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए।
• कन्दमूलादि अभक्ष्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रतधारी के लिए अकरणीय
सम्यक्त्व व्रतधारी गृहस्थ के लिए कुछ कृत्य निषिद्ध बतलाए गए हैं। वे निम्न हैं
बाईस अभक्ष्य- प्रवचनसारोद्धार के अनुसार व्रतधारी को अग्र- लिखित अभक्ष्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए7
1-5. पाँच उदुम्बर-बड़, पीपल, पिलंखण, कलुबर, गूलर-ये पाँच फल। इनमें मच्छर जैसे असंख्य सूक्ष्म जीव होते हैं।
6-9. महाविगय-मदिरा, मांस, मधु एवं मक्खन-इनमें तद्वर्ण के असंख्य सम्मूर्छिम जीव उत्पन्न होते हैं।
10. हिम (बरफ)- यह असंख्य अप्काय जीवों का पिण्ड होता है। 11. विष (जहर)-इसे खाने से चेतना मूर्च्छित हो जाती है।
12. करका (आकाश से गिरने वाले ओले)-ये अप्काय जीवों के पिंडरूप होते हैं।
13. मिट्टी (सभी जाति की कच्ची मिट्टी)-इसमें मेंढक आदि पंचेन्द्रिय जीवों के उत्पत्ति की संभावना रहती है। खड़ी आदि खाने से आमाशय दूषित