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________________ विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप ...251 विविध संस्कृतियों में विवाह का स्वरूप विवाह दो आत्माओं का पवित्र बन्धन है। इसके द्वारा दो प्राणी अपने अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं। संसार के प्रत्येक व्यक्ति में खुबियाँ और खामियाँ दोनों तत्त्व रहे हुए हैं। विवाह द्वारा एक-दूसरे की अपूर्णताओं को अपनी विशेषताओं से पूर्ण किया जाता है। इससे व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व का निर्माण होता है, इसलिए विवाह को सामान्यतया मानव जीवन की एक आवश्यकता माना गया है। __ एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि धर्मनीति, समाजनीति एवं लोकनीति की मर्यादाओं को अस्वीकार करते हए अनियंत्रित रीति से स्वेच्छाचार करना 'स्वच्छन्दता' है जबकि इन्हीं मर्यादाओं को विवेक पूर्वक स्वीकार करते हुए नियंत्रित जीवन जीना ‘स्वतन्त्रता' है। दोनों मे गति तो है, किन्तु अन्तर नियंत्रण का है। जैसे वाहन चालू (गति में) है, परन्तु उसका नियंत्रक (ड्राइवर) न हो, तो वह स्व-पर के लिए घातक सिद्ध होता है, इसी प्रकार अमर्यादित जीवन यात्रा भी व्यक्ति के स्वयं के लिए एवं सम्पर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों के लिए भी घातक सिद्ध होती है अत: विवाह मर्यादित जीवन शैली का साक्षात स्वरूप है। यह एक ऐसा संस्कार है, जो पति-पत्नी के जीवन रूपी गाड़ी को गृहस्थ धर्म रूपी पटरियों पर मर्यादित करके गतिशील रखता है। जब तक नर या नारी, पति और पत्नी के धर्म की मर्यादाओं का पालन करते हैं, उनकी गाड़ी कभी पटरी से नहीं उतरती है बल्कि वे धर्म, अर्थ एवं काम रूपी लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए मोक्ष रूपी परम लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति में विवाह को एक संस्कार के रूप में माना है, जबकि आधुनिक जगत में इसे 'विषय भोग का वैधानिक प्रमाण पत्र' मानते हैं। यह दृष्टि बदलाव का कारण है और इन दोनों के परिणाम भी स्पष्ट हैं। एक में निष्ठा, सहयोग और समर्पण के साथ पारस्परिक विश्वास एवं एक दूसरे की मनोभावनाओं का सम्मान करते हुए चतुर्विध पुरूषार्थ की साधना करते हैं, जबकि दूसरे में 'प्रमाण पत्र' के रूप में स्वीकार करने वाले दम्पति कई बार इस प्रमाण पत्र को बदल लेते हैं, लेकिन यथार्थ में विवाह-सेवा, समर्पण एवं विश्वास की एक अनुगूंज है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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