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________________ अध्याय - 15 विवाह संस्कार विधि का त्रैकालिक स्वरूप विवाह, सामाजिक व्यवस्था का अमूल्य अंग है। इसी के आधार पर सम्पूर्ण सामाजिक संरचना निर्भर करती है। इसी कारण विवाह संस्कार को अद्वितीय एवं सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। यह एक ऐसा संस्कार है, जो आज भी सभी वर्गों में किसी न किसी रूप में प्रचलित है और समारोह पूर्वक सम्पन्न किया जाता है। यह गृहस्थ धर्म का आधारभूत संस्कार है। यदि इसकी मर्यादा का सही रीति से निर्वाह किया जाए, तो यह केवल दैहिक आवश्यकता की परिपूर्ति ही नहीं करता, अपितु नैतिक एवं सामाजिक व्यवस्था में भी सहायक बनता है। ___ श्वेताम्बर परम्परा में चौदहवाँ संस्कार विवाह नाम का है, जबकि दिगम्बर में चौदहवाँ उपनीति नाम का एवं वैदिक परम्परा में केशान्त नाम का संस्कार माना गया है। यदि तुल्य अर्थ की दृष्टि से देखें, तो विवाह संस्कार श्वेताम्बर परम्परा में चौदहवें, दिगम्बर परम्परा में सोलहवें एवं वैदिक परम्परा में पन्द्रहवें स्थान पर है। विवाह शब्द का पारिभाषिक अर्थ • विवाह-वि' उपसर्ग पूर्वक, 'वह' धातु में 'घञ्' प्रत्यय के योग से बना है। विवाह का अर्थ है-विशेष प्रकार से वहन करना अर्थात विशेष प्रकार से पारस्परिक दायित्वों का वहन करना विवाह है। • विवाह का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- 'विशेषेण वाह्यते इति विवाहः' अर्थात जो विशेष प्रकार से वहन किया जाता है, वह विवाह है। अथवा विशिष्ट प्रकार से पारस्परिक सम्बन्धों को वहन करना विवाह है। यदि हम इस अर्थ की कुछ विस्तृत व्याख्या करें तो दो प्रश्न उपस्थित होते हैं कि किसे और किस प्रकार से वहन करना? इन दोनों प्रश्नों दैहिक सम्बन्ध या काम-भोग की दृष्टि से ही विचार नहीं करना है। भारतीय संस्कृति में इसकी व्याख्या जन्म-जन्मान्तर
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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