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214...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
मेखला- कौपीन के अनन्तर आचार्य बालक की कटि के चारों और मन्त्र के साथ मेखला बाँधता था। वह मन्त्र यह है-“पाप को दूर रखती हुई, शोधक की भाँति मनुष्यों को शुद्ध करती हुई, श्वास तथा प्रश्वास की शक्ति से स्वयं को आवृत्त करती हुई, भगिनी मेखला मेरे निकट आई है।89''
यह मेखला तिहरे सूत्र से बनाई जाती थी, वह इसका प्रतीक है कि ब्रह्मचारी सर्वदा तीन वेदों से आवृत्त रहे। उत्तरीय वस्त्र की भाँति मेखला भी भिन्न-भिन्न वर्गों के लिए भिन्न पदार्थों से निर्मित होती थी। कहा गया है कि ब्राह्मण की मेखला मुंज की, क्षत्रिय की धनुष की प्रत्यंचा की और वैश्य की ऊन की होनी चाहिए। यह मेखला समान, चिकनी और देखने में सुन्दर होनी चाहिए।
यज्ञोपवीत- मेखला धारण करने के पश्चात् ब्रह्मचारी को उपवीतसूत्र दिया जाता था, जो परवर्ती लेखकों के अनुसार उपनयन संस्कार का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है, जबकि प्राचीनतम काल में इसका प्रचलन नहीं था, यह गृह्यसूत्रों के अध्ययन से सर्वथा स्पष्ट हो जाता है। किसी भी गृह्यसूत्र में उपवीतसूत्र धारण करने का विधान नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि बालक को दिया जाने वाला उत्तरीय ही यज्ञोपवीत का पूर्व रूप होगा और उससे ही कालान्तर में उपवीतसूत्र का जन्म हुआ।90
धर्मशास्त्रों के नियमानुसार ब्राह्मण को कपास का, क्षत्रिय को सन का और वैश्य को भेड़ के ऊन का उपवीत धारण करना चाहिए तथा वैकल्पिक रूप से सभी वर्गों के लिए कपास का यज्ञोपवीत विहित है। सभी वर्गों के लिए भिन्नभिन्न रंग का उपवीत भी कहा गया है। ब्राह्मण श्वेत, क्षत्रिय लाल और वैश्य पीला यज्ञोपवीत पहनते हैं। यज्ञोपवीत के सम्बन्ध में यह जानना भी आवश्यक है कि उपवीत को ब्राह्मण कुमारी कातती है, ब्राह्मण द्वारा उसमें गाँठ दी जाती है, ये गाँठे उपवीत धारण करने वाले व्यक्ति के पूर्वजों के प्रवरों की संख्या के अनुसार दी जाती हैं। इसकी लम्बाई एक मनुष्य की चार अंगुलियों की चौड़ाई की 96 गुनी होती है, जो उसकी ऊँचाई के बराबर होती है। चार अंगुलियाँ उन चार अवस्थाओं की प्रतिनिधि है, जिनका अनुभव मनुष्य समय-समय पर करता रहता है, वे हैं जागृति, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय। उपवीत के तीन धागे भी प्रतीकात्मक हैं। वे सत्त्व, रजस् व तमस् का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनसे सम्पूर्ण विश्व विकसित हुआ है।