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अध्याय - 13
उपनयन संस्कार विधि का आध्यात्मिक स्वरूप
उपनयन संस्कार का नाम लेने के साथ ही मुंडन, जनेउ धारण आदि के चित्र मानस पटल पर उभरने लगते हैं। आम जन धारणा है कि यह संस्कार सिर्फ वैदिक परम्परा से जुड़ा हुआ है तथा प्राय: उसी परम्परा में इसका प्रचलन देखा जाता है, किन्तु यथार्थता यह है कि तीनों आर्य परम्पराओं में इसका उल्लेख हैं। यह संस्कार बालक के विद्याध्ययन से सम्बन्धित है। इस संस्कार के माध्यम से विद्याध्ययन के योग्य बालक को गुरु के सान्निध्य में भेजा जाता है। उपनयन संस्कार से तात्पर्य ब्रह्मचर्य व्रत के पालन पूर्वक निश्चित अवधि तक योग्य गुरु के सान्निध्य में रहकर विद्याध्ययन करना है। इस संस्कार का सामान्य ध्येय विद्याध्ययन है।
यह संस्कार सभी में सर्वोत्तम माना गया है। भारतीय संस्कृति की सभी धाराओं ने उपनयन संस्कार को आदर भाव के साथ स्वीकार किया है। इस संस्कार का विशेष महत्त्व उपवीतसूत्र धारण करवाना रहा है। ___ हिन्दू धर्म के शिखा और सूत्र-ये दो सर्वमान्य प्रतीक हैं। जिस प्रकार सुन्नत को मुस्लिम, केश आदि पंच ककार धारण करने वालों को सिक्ख, अपने-अपने विभाग की पोशाक पहनने वालों को पुलिस, फौजी या कर्मचारी आदि रूपों में जाना जाता है। उसी प्रकार सिर पर शिखा धारण करने एवं शरीर पर जनेऊ (उपवीत) धारण करने वाले को हिन्दू माना जाता है। ये दो प्रतीक हिन्दुओं की धर्म निष्ठा को अभिव्यक्त करते हैं। वस्तुत: जैन एवं वैदिक-दोनों परम्पराओं में इसका महत्त्व समान रूप से रहा है। उपनयन संस्कार का अर्थपरक स्वरूप विश्लेषण
उपनयन का सामान्य अर्थ है-निकट ले जाना। व्याकरण के अनुसार उपनयन शब्द 'उप' उपसर्ग, 'नी' धातु 'ल्युट्' प्रत्यय के योग से निष्पन्न हुआ