SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 174... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन लोगों में यह विसंवाद है कि एक बार सम्पूर्ण बालों का कर्त्तन हो जाना चाहिए और फिर नए बाल के उगने पर यह रखी जाए। यह पक्ष कुछ अधिक सटीक और वैज्ञानिक प्रतीत होता है। आज जैन परम्परा में बालक के पूर्ण मस्तक (केशराशि) का मुण्डन किया जाता है तथा शिखा रखने की कोई प्रथा नहीं है । समाहारत: यह संस्कार शारीरिक स्वस्थता, मानसिक निर्मलता, धार्मिक उन्मुखता एवं कुल परम्परा के निर्वहन की दृष्टि से अत्यन्त उपादेय है। बालों का शारीरिक स्वास्थ्य के साथ गहरा सम्बन्ध रहा हुआ है। यह चूड़ाकर्म सिर की ग्रन्थियों के सही संचालन से सम्बन्ध रखता है। इसका मूलोद्देश्य प्रखर मेधा की प्राप्ति है। शरीर में सिर का सर्वोच्च स्थान माना जाता है। वह ब्रह्मकेन्द्र कहलाता है अतः ब्रह्म स्थान को स्वस्थ और सुसंस्कृत बनाए रखना राष्ट्र के लिए भी हितकारी है। चोटी को आर्यों का चिह्न माना गया है। प्रारम्भिक काल में सिर को स्वच्छ रखने हेतु यह कर्म किया जाता होगा। इसका मुख्य प्रयोजन गर्भकाल के केशों का मुंडन रहा है, क्योंकि गर्भ के बाल अपवित्र होते हैं। यह संस्कार लौकिक-लोकोत्तर दोनों दृष्टियों से महनीय स्थान रखता है। आज भी इसे किसी देवी-देवता के स्थान या पवित्र नदियों के तट पर सम्पन्न करने की परम्परा प्रचलित है। सन्दर्भ - सूची 1. प्रश्नव्याकरण, अंगसुत्ताणि-2/13 2. राजप्रश्नीय, मधुकरमुनि - 280 3. आश्वलायनगृह्यसूत्र, 17/12 4. हिन्दूसंस्कार, पृ. 120 5. वही, पृ. 120 6. षोड़शसंस्कारविवेचन, श्रीराम शर्मा आचार्य, पृ. 7-1 7. संस्कार अंक, पृ. 304-310 8. आचारदिनकर, पृ. 18 9. हिन्दूसंस्कार, पृ. 126-27 10. आचारदिनकर, पृ. 18 11. जैनसंस्कारविधि, पृ. 12 12. धर्मशास्त्र का इतिहास, भा. - 1, पृ. 104
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy