________________
अध्याय - 12 चूड़ाकरण संस्कार विधि का उपयोगी स्वरूप
भारतीय परम्परा में चूड़ाकरण एक महत्त्वपूर्ण विधान है। बालों को यद्यपि सौंदर्य का प्रतीक माना गया है, परंतु कुछ विशिष्ट प्रसंगों में मुंडन को आवश्यक माना गया है। यह संस्कार नवजात शिशु के सिर के बालों का मुण्डन करने से सम्बन्धित है। इस संस्कार के द्वारा बालक के गर्भगत केशों का मुण्डन किया जाता है। ये केश एक प्रकार से पूर्वकालिक अशुचिता के अवशेष माने जाते हैं और इनके मण्डन का उद्देश्य स्वास्थ्य एवं शरीर का नया संस्कार करना ही है। इस संस्कार का प्रारम्भिक उद्देश्य स्वास्थ्य और सौन्दर्य रहा होगा ऐसा संकेत मिलता है, किन्तु क्रमश: केशोच्छेदन की बढ़ती उपयोगिता एवं उसके सपरिणामों ने इसे धार्मिक संस्कार के रूप में स्थान प्राप्त करवाया, ऐसी वैदिक अवधारणा है।
जैन वांगमय में भी इस संस्कार का अस्तित्व प्राचीनतम सिद्ध होता है। प्रश्नव्याकरणसूत्र और राजप्रश्नीयसूत्र में चौलकर्म संस्कार के स्पष्ट उल्लेख हैं। उस काल में इस संस्कार का क्या स्वरूप था? इससे सम्बन्धित कौन-कौन से विधि-विधान सम्पन्न किए जाते थे? यह चर्चा तो उन ग्रन्थों में नहीं मिलती है किन्तु उस युग में चौलकर्म संस्कार सम्पन्न किया जाता था, इतना निर्देश स्पष्टत: है। इस संस्कार की दूसरी विशिष्टता यह है कि सामान्य नामान्तर के साथ श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक इन तीनों परम्पराओं में इसे पृथक् संस्कार के रूप में स्वीकार किया गया है। श्वेताम्बर परम्परा में ग्यारहवें संस्कार का नाम चूड़ाकरण है, जबकि दिगम्बर परम्परा में वर्षवर्द्धन एवं वैदिक मत में उपनयन नाम का ग्यारहवाँ संस्कार है। यह अन्तर क्रम की अपेक्षा से है। चूड़ाकरण शब्द का अर्थ विश्लेषण
चौल, चूडाकर्म और चूड़ाकरण-ये तीनों शब्द एकार्थवाची हैं। चूड़ा का अर्थ है-केशगुच्छा। जो बाल-गुच्छा मुण्डित सिर पर रखा जाता है, उसे शिखा