________________
नामकरण संस्कार विधि का प्रचलित स्वरूप... 123
प्राकृतिक विभूतियों के आधार पर भी नाम रखे जा सकते हैं। जैसे-कमल, हेमन्त, गुलाब, चन्दन, पराग, रजनीकान्त आदि तथा बालिकाओं के नाम - उषा, रजनी, सरिता, मधु, सुषमा आदि ।
नामकरण संस्कार की मूल्यवत्ता को बनाए रखने के लिए बालक और बालिकाओं के नामों की एक लम्बी सूची बनानी चाहिए, उसमें से चुनकर यथायोग्य उत्साहवर्द्धक, सौम्य एवं प्रेरणादायक नाम रखना चाहिए। बालकों को समय-समय पर यह बोध भी कराते रहना चाहिए कि उनका अमुक नाम है। इस प्रकार इन्हें प्रेरित करते हुए उनमें नाम के अनुरूप गुण पैदा करना चाहिए।
सायण के मतानुसार नामकरण संस्कार के समय शिशु के चार प्रकार के नाम रखे जा सकते हैं - 1. नक्षत्र नाम 2. गुप्त नाम 3. सर्वसाधारण नाम 4. यज्ञप्रयुक्त नाम। 1 बौधायन के अनुसार नक्षत्र पर आधारित नाम गुह्य रखा जाता है। यह वयोवृद्धों का सत्कार करने के लिए द्वितीय नाम होता है तथा उपनयन के काल तक यह नाम केवल माता - पिता को विदित रहता है । कतिपय आचार्यों के मतानुसार यह गुह्यनाम जन्म के दिन ही रखा जाता है। 2 संस्कारप्रकाश में निम्न चार प्रकार के नाम रखने का उल्लेख मिलता है - 1. देवता नाम 2. मास नाम 3. व्यावहारिक नाम और 4. नक्षत्र नाम।
मनुस्मृति के अनुसार ब्राह्मण का नाम मंगल और आनन्दसूचक, क्षत्रिय का नाम बल रक्षा और शासन क्षमता का सूचक, वैश्य का नाम धनन-ऐश्वर्य सूचक तथा शूद्र का नाम आज्ञाकारिता सूचक रखना चाहिए। इसके सिवाय हिन्दू ग्रन्थों में नाम चयन को लेकर काफी गहरी चर्चा हुई है। पिता, पुत्र, पुत्री, माता आदि का नाम कितने अक्षरों वाला, कौनसे पदान्त वाला एवं किन अर्थों वाला होना चाहिए? इत्यादि संकेतों पर लम्बी विचारणा की गई है। इसका अभिप्राय यह है कि जातक का नाम दो अक्षरों वाला या चार अक्षरों वाला होना चाहिए। दो प्रकार के नाम दिए जाते हैं- एक, जन्म नक्षत्र का नाम जो गुह्य होता है। दूसरा, पुकार का नाम जो व्यवहार के लिए है। किसी-किसी गृह्यसूक्त के अनुसार कन्या का नाम तीन या पाँच अक्षर का होना चाहिए। नाम को संस्कार मानना भारतीय चिन्तन का द्योतक है। इसके लिए नाम केवल शब्द ही नहीं, एक कल्याणमय विचार भी है। नाम देते समय यह भी ध्यान देना अपेक्षित है कि संतान के पिता या पितामह का एकाध नामाक्षर भी उसमें आ जाए, जिससे