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अध्याय -9 नामकरण संस्कार विधि का प्रचलित स्वरूप
नाम व्यक्ति की पहचान और उसके अस्तित्व होने का प्रमाण होता है। नाम के इसी महत्त्व को ध्यान में रखते हुए भारतीय परम्परा में नामकरण संस्कार को विशिष्ट स्थान दिया गया है। यह संस्कार विधि पूर्वक बालक का नाम रखने से सम्बन्धित है। इस संस्कार द्वारा जन्म लेने वाले बालक का सार्थक नामकरण किया जाता है। नामकरण एक ऐसा संस्कार है, जिसका सम्बन्ध व्यक्ति की जीवितावस्था से ही नही, अपितु मरणोत्तर अवस्था से भी है। एक बार जो नामकरण कर दिया जाता है, वह नाम उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का अट भाग बन जाता है, जिसको उससे सर्वथा अलग नहीं किया जा सकता। भौतिक जगत में नाम का महत्त्व पग-पग पर देखने को मिलता है। चाहे वह कोई प्राणी हो या कोई पदार्थ, नाम के बिना उसका अस्तित्व बोधगम्य नहीं हो पाता। नाम की सार्थकता सर्वत्र देखी जाती है। बिना नाम के यह दुनिया चल ही नहीं सकती। बिना नाम के किसी व्यक्ति या वस्तु को पहचाना ही नहीं जाता है। नामकरण का दायरा अति विस्तृत है। संसार के प्राय: सभी व्यवहार नाम के आधार पर ही चलते हैं। यदि हम नाम की मूल्यवत्ता को गौण कर दें तो इस विश्व का सारा वचन व्यवहार ही समाप्त हो जाएगा अत: नामकरण संस्कार का अपने आप में विशिष्ट महत्त्व है।
यह ध्यातव्य है कि श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक- तीनों परम्पराओं में नामकरण-संस्कार को स्वीकार किया गया है। श्वेताम्बर-परम्परा में नामकरण संस्कार का आठवाँ स्थान है, दिगम्बर परम्परा में इसका स्थान सातवाँ है तथा वैदिक परम्परा में इसको पाँचवां स्थान प्राप्त है। तीनों परम्पराओं में क्रम की दृष्टि से अन्तर होने पर भी अर्थ की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है। सभी परम्पराओं ने नामकरण के महत्त्व, प्रयोजन, उद्देश्य आदि को समानरूप से मान्य किया है केवल संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों में हेर-फेर और अन्तर है।