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________________ शुचिकर्म संस्कार विधि का ऐतिहासिक स्वरूप ...115 शुचिकर्म संस्कार विषयक काल विमर्श __ श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार का कोई निश्चित काल नहीं बताया गया है। वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में इतना लिखा गया है कि अपने-अपने वर्ण के अनुसार निर्धारित दिनों के व्यतीत होने पर शुचिकर्म संस्कार करना चाहिए। इसके साथ यह भी निर्दिष्ट किया है कि ब्राह्मणों को दसवें दिन, क्षत्रियों को बारहवें दिन, वैश्य को सोलहवें दिन और शूद्र को एक महीने में शुचिकर्म करना चाहिए। यदि हम जैन आगम साहित्य का अवलोकन करते हैं तो उसमें ज्ञाताधर्मकथा', औपपातिक, राजप्रश्नीय : एवं कल्पसूत्र आदि में बारहवें दिन अशचिकर्म सम्बन्धी क्रियाकलाप करने का निर्देश दिया गया है। इससे ज्ञात होता है कि आगमिक दृष्टि से अशुचिकर्म निवारण विधि जन्म से बारहवें दिन की जानी चाहिए। यदि हम प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं तो विधिमार्गप्रपा में पत्र का सूतक काल सात दिन और पुत्री का सूतक काल आठ दिन माना गया है। इसके आधार पर शुचिकर्म संस्कार की विधि आठवें या नौवें दिन की जानी चाहिए। यदि दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों को देखा जाए तो उनमें सूतक का काल दस दिन माना गया है। वैदिक परम्परा के ग्रन्थों को पढ़ते हैं तो उनमें भी सूतक का काल दस दिन स्वीकार किया गया है।10 यदि हम वर्तमान युग पर नजर डालें तो जैन परम्परा में यह संस्कार दसवें दिन सम्पन्न किया जाता है। सामाहारत: काल की दृष्टि से इस संस्कार को सम्पन्न करने के सन्दर्भ में भिन्न-भिन्न अवधारणाएँ रही हैं तथा देशकालगत स्थितियों के आधार पर इनमें परिवर्तन भी होते हुए देखे जाते हैं। सच्चाई के साथ कहें तो आधुनिक युग में यह संस्कार विधि विलुप्त सी हो चुकी है। किन्तु लौकिक न्याय के अनुसार प्रसव-क्रिया चिकित्सालय में होने के बावजूद भी परम्परा के अनुसार घर पर शुचिकर्म संस्कार विधि अवश्यमेव करनी चाहिए। यही युक्ति संगत और धर्म संगत है। शुचिकर्म संस्कार संपादन में उपयोगी सामग्री श्वेताम्बर परम्परा के आचारदिनकर में इस संस्कार के लिए निम्न सामग्री आवश्यक मानी गई है- (1) जिनप्रतिमा पूजन की सर्व सामग्री (2) पंचगव्य (3) स्वगोत्रजन (4) सर्वोषधिजल (5) तीर्थोदक (6) नए वस्त्र
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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