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________________ क्षीराशन(दुग्धपान) संस्कार विधि का क्रियात्मक स्वरूप ...103 अन्तर्भावों एवं स्तनपान की प्रक्रिया को सक्रिय एवं सशक्त किया जाता है। स्तनपान से झरने वाले दूध को अमृत की संज्ञा दी गई है। अमृत का गुण शरीर को हृष्ट-पुष्ट एवं मजबूत करना है। बालक का शरीर भी हृष्ट-पुष्ट एवं बलवान् हो, इसी उद्देश्य को लेकर यह संस्कार सम्पन्न किया जाता है। नवजात शिशु के लिए दुग्धाहार उत्तम गुणकारी माना गया है। यही आहार आसानी से पचता है और बलवृद्धि भी करता है। चिकित्सकों एवं आधुनिक डाक्टरों का भी यह अभिमत है कि शरीर, मन एवं विचारों की आरोग्यता बनाए रखने के लिए जीवन की प्रारम्भिक वय में माता के स्तनों के दुग्ध का पान कराया जाना चाहिए। आधुनिक जीवन-प्रणाली में भी इस आहार की आवश्यकता और अनिवार्यता प्रत्यक्षत: देखी जाती है। इस दुनियाँ में जीने वाला लगभग प्रत्येक मानव प्रात:काल सबसे पहले दुग्ध का सेवन अवश्य करता है, फिर वह बाल हो या वृद्ध, पुरूष हो या नारी, रोगी हो या निरोगीइस आहार की उपादेयता सभी के लिए समान रूप से स्वीकारी गई है। सन्दर्भ-सूची 1. आचारदिनकर, पृ. 12 2. आदिपुराण, पर्व-40, पृ. 304-305 3. हिन्दूसंस्कार, पृ. 94 4. आचारदिनकर, पृ. 12 5. आदिपुराण, पर्व-40, पृ. 305 6. धर्मशास्त्र का इतिहास, पृ. 194 7. आचारदिनकर, पृ. 12 8. आदिपुराण, पर्व-40, पृ. 305 .9. धर्मशास्त्र का इतिहास, पृ. 193-94 10. आचारदिनकर, पृ. 12 11. आदिपुराण, पर्व-40, पृ. 305 12. धर्मशास्त्र का इतिहास, पृ. 194
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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