SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 74... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन प्रभावकारी घटना थी। उस युग के मानव ने कुछ संकटग्रस्त परिस्थितियाँ महसूस की होंगी, एतदर्थ शिशु की सुरक्षा निमित्त अनेक प्रकार के विधि-विधान अस्तित्व में आए होंगे। गर्भवती स्त्री और नवजात शिशु को विपदाग्रस्त स्थितियों से बचाना एक आवश्यक कर्तव्य था, साथ ही प्रसवजन्य अशुचि को धार्मिक दृष्टि से दूर करना भी अनिवार्य था । उस स्थिति में किन्हीं आसुरी शक्तियों का प्रभाव गर्भवती के लिए संहारक न बन जाए, इसी तरह के अन्य भी कई कारण रहे होंगे, जिनके निवारणार्थ जातकर्म से सम्बद्ध कुछ विधिविधानों का किया जाना आवश्यक प्रतीत हुआ। तब से लेकर आज तक जन्म सम्बन्धी संस्कार के क्रिया कलाप न्यूनाधिक रूप से प्रवर्त्तित होते रहे हैं। मूलतः इस संस्कार का प्रयोजन माता और पुत्र की सुरक्षा करना था। किसी प्रकार की अमंगल घटना से प्रसूता एवं प्रसूत को मुक्त करवाना था, दुष्ट शक्तियों को निरस्त करना था। इतना ही नहीं, माता एवं पुत्र को सुसंस्कारित करने के साथ-साथ उस अवसर को उत्सवमय बनाना भी था । इन्हीं कुछ कारणों के चलते इस संस्कार को सम्पन्न करने की आवश्यकता महसूस की गई । समन्वयात्मक-दृष्टिकोण से कहें तो इस संस्कार से गर्भस्रावजन्य सारे दोष नष्ट हो जाते हैं। जातकर्म संस्कार करने योग्य अधिकारी श्वेताम्बर परम्परामान्य आचारदिनकर में इस संस्कार को करने का अधिकारी जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक को बतलाया गया है, किन्तु वर्तमान में ये क्रियाएँ हिन्दू ब्राह्मण ही करवाते हैं। 4 दिगम्बर परम्परा में गर्भाधान आदि संस्कारों को सम्पन्न कराने वाला द्विज ही इस संस्कार को करने के योग्य माना गया है। 5 वैदिक परम्परा में भी ब्राह्मण एवं शिशु का पिता इस संस्कार को करने के योग्य कहे गए हैं। जातकर्म संस्कार के लिए मुहूर्त्त - विचार जैन एवं वैदिक दोनों परम्पराओं में जन्म - संस्कार के लिए किसी भी शुभ दिन आदि का उल्लेख नहीं किया गया है। चूंकि वह जीव कर्म एवं काल के अधीन होता है अतः शुभ दिन आदि का तालमेल इस संस्कार के साथ करना असंभव है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy