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________________ गर्भाधान संस्कार विधि का मौलिक स्वरूप ...55 गर्भाधान संस्कार की मूल विधि है। उसके बाद अपने कुलाचार के अनुरूप कुल देवता, गृह देवता और नगर देवता आदि का पूजन करें। दिगम्बर- दिगम्बर परम्परा में गर्भाधान संस्कार-विधि का स्वरूप बताते हुए यह निर्देश किया है कि उस दिन मासिक धर्म से शुद्ध हुई नारी मन्दिर में जाकर अरिहंत प्रतिमा की पूजा-अर्चना करे। उस पूजा-विधि की क्रिया में जिनेन्द्र परमात्मा के दाहिनी ओर तीन चक्र, बाईं ओर तीन छत्र और सम्मुख तीन अग्नियों की स्थापना करे। तदनन्तर शेष बचे हुए द्रव्य से पुत्रोत्पन्न की इच्छा करते हुए तीन अग्नियों में आहुति दें। उस अवसर पर गृहस्थाचार्य दम्पत्ति को पीले चावल से बधाएँ। यही गर्भाधान संस्कार है।23 वैदिक- वैदिक परम्परा में इस संस्कार की भिन्न-भिन्न विधियाँ पढ़ने को मिलती हैं। शंखायनगृह्यसूत्र में कहा गया है कि विवाह की तीन रात व्यतीत हो जाने पर चौथी रात्रि को पति अग्नि में पके हुए भोजन की आठ आहुतियाँ दे तथा अध्यण्डा नामक वृक्ष की जड़ को कूटकर उसका जल पत्नी के नाक में छिड़के और संभोग करते समय 'तू गन्धर्व विश्वास का मुख हो' ऐसा कहे।24 पारस्करगृह्यसूत्र में यही विधि कही कई है। गोभिल ने भी इसी विधि का संक्षेप में निरूपण किया है। भारद्वाजगृह्यसूत्र में एक विशेष बात यह निर्दिष्ट की है कि रजस्वला स्त्री चौथे दिन स्नानोपरान्त श्वेत वस्त्र धारण करे और अन्य किसी से बात न करे।25 इसी बात को वैश्वानसगृह्यसूत्र में इस प्रकार कहा गया है कि वह पति को छोड़कर किसी अन्य को न देखे, अन्यथा देखे गए व्यक्ति के समान उसकी सन्तान उत्पन्न होगी ऐसी पारम्परिक मान्यता कही है। इस प्रकार वैदिक परम्परा में कुल मिलाकर गर्भाधान संस्कार के सम्बन्ध में उक्त मान्यताएँ एवं विधियाँ उल्लिखित हैं। . समाहारत: कहा जा सकता है कि गर्भाधान संस्कार को किसी न किसी रूप में तीनों परम्पराओं ने स्वीकार किया है। सभी ने इस संस्कार को प्राथमिक स्थान दिया है। श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में इस संस्कार को करने का अधिकारी जैन ब्राह्मण (गृहस्थ आचार्य) एवं क्षुल्लक को माना गया है, जो सन्तति को सुसंस्कृत बनाने की दृष्टि से पूर्णत: उचित प्रतीत होता है। वैदिक परम्परा में संस्कार का कर्ता पति को माना गया है, जो गर्भाधान की प्रक्रिया को सम्पन्न करने की दृष्टि से सही मालूम होता है। जैन एवं वैदिक-दोनों परम्पराओं में इस
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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