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________________ 42... शोध प्रबन्ध सार • नित्य जागते एवं सोते समय 24 नमस्कार मंत्र का स्मरण करना चाहिए । • वीतराग देव, निर्ग्रन्थ गुरु एवं अहिंसामय धर्म की उपासना करनी चाहिए। • प्रतिदिन पूजा करनी चाहिए। गीतार्थ परम्परा के अनुसार प्रतिदिन सामायिक आदि षडावश्यक विधि • का पालन करना चाहिए। • 22 अभक्ष्य, 32 अनन्तकाय, कन्दमूल आदि अभक्ष्य पदार्थों का त्याग करना चाहिए। इस प्रकार एक जैन गृहस्थ श्रावक की दिनचर्या एवं जीवनशैली का पूर्ण नियमन श्रुत साहित्य में प्राप्त हो जाता है। उन्हीं ग्रन्थों के आधार पर जैन विधिविधानों का अध्ययन करते हुए जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी इस अनुशीलन को सात अध्यायों में विभक्त किया है। इन सात अध्यायों के अन्तर्गत जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विभिन्न तथ्यों को उजागर किया है। इस तृतीय खण्ड का प्रथम अध्याय जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि का प्रतिपादन करता है । इस अध्याय में श्रावक के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए श्रमण और गृहस्थ वर्ग की साधना में रहे हुए भेदों को निरूपित किया है। यद्यपि जैन साधना पद्धति में श्रमण वर्ग की साधना को अधिक महत्त्व दिया गया है परंतु गृहस्थ साधना का भी उतनी ही महत्ता है। उस महत्त्व को दर्शाते हुए गृहस्थ उपासक की साधना का क्रम, गृहस्थ साधक के विभिन्न स्तर, श्रावक कहलाने के लिए आवश्यक प्राथमिक योग्यताएँ एवं उनके लिए करणीय-अकरणीय नियमों का भी वर्णन किया गया है। इस अध्याय का ध्येय श्रावक धर्म से च्युत हो रहे जैन समाज को दैनिक कर्तव्यों, मार्मिक आचारों एवं आवश्यक गुणों से परिचित करवाना तथा उन्हें श्रावक धर्म की मुख्य भूमिका पर आरूढ़ करना है। इसके पश्चात दूसरे अध्याय में सम्यक्त्व व्रत आरोपण विधि का मौलिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। सम्यक दर्शन अध्यात्म साधन का मूल आधार है। मुक्ति महल का प्रथम सोपान है। श्रुत धर्म और चारित्र धर्म की आधारशिला है। रत्नत्रयी में श्रेष्ठ रत्न है। गुणस्थान आरोहण का लाइसेंस है। सम्यक दर्शन की इसी महत्ता को
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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