________________
22... शोध प्रबन्ध सार
भाग- 1
“जैन विधि-विधानों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन” इस विषय को स्पष्ट करने हेतु प्रथम भाग जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य एवं गृहस्थ वर्ग से सम्बन्धित विधि-विधानों पर आधारित है। इसे निम्न तीन खण्डों से वर्गीकृत किया गया है।
खण्ड-1 जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास | खण्ड-2 जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन । खण्ड -3 जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधि-विधानों का प्रासंगिक अनुशीलन।
शोध का प्रमुख आधार श्रुत साहित्य होता है। जैन ग्रंथ भंडार विधि-विधान सम्बन्धी अनेक प्राचीन एवं अर्वाचीन शास्त्रों से भरे हुए हैं, परन्तु उन ग्रन्थों का विषयवार वर्णन कहीं उपलब्ध नहीं होता। इसी के साथ किस ग्रंथ में, किस विषय को मुख्यता दी गई है ? वह किस समय की रचना है ? आदि अनेक विचारणीय विषय हैं अतः प्रथम खण्ड में जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का ऐतिहासिक एवं विवेचनात्मक स्वरूप स्पष्ट किया है।
विधि-विधान सम्बन्धी ग्रन्थों का विवेचन करने के पश्चात साधक जीवन की प्रारंभिक कक्षा के रूप में गृहस्थ के व्यावहारिक जीवन का चित्रण किया है। अध्यात्म जगत में प्रवेश करने से पूर्व गृहस्थ जीवन का कुशल सम्पादन एवं समस्त आचारों का सम्यक निर्वहन आवश्यक है। व्यक्ति के सदाचार एवं संस्कार युक्त जीवन में उसकी परवरिश का मुख्य स्थान होता है। जैन एवं वैदिक परम्परा में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त सोलह संस्कार किए जातें हैं। इन संस्कारों के द्वारा वह जीवन में पूर्णता को प्राप्त करता है अतः गृहस्थ मर्यादाओं एवं व्रतों की चर्चा करने से पूर्व द्वितीय खण्ड में व्यवहारिक जीवन की मर्यादा रूप सोलह संस्कारों का तुलनापरक विश्लेषण किया है।
गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी अपने जीवन को किस प्रकार तप-त्याग एवं नियमों से संयुक्त रखे इसका कुशल निर्देशन जैनाचार्यों ने किया है। यद्यपि गृहस्थ जीवन कर्म बन्धन का केन्द्र बिन्दु ( centerpoint ) है परंतु व्रत ग्रहण द्वारा बन्धन के प्रवाह को रोका जा सकता है अतः इस भाग के अन्तिम खण्ड में गृहस्थ जीवन को देशविरति में आरूढ़ करने वाले एवं सर्वविरति धर्म की