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शोध प्रबन्ध सार ...xiv
निर्विवादत: विधि-विधान, यह धर्म एवं विज्ञान का अनुपम संयोग है। इसके द्वारा जहाँ आध्यात्मिक उच्चता एवं रमणता प्राप्त होती है वहीं इनका आचरण शारीरिक स्वस्थता, सुंदरता एवं सुगढ़ता के साथ आपसी प्रेम भाव, मित्रता आदि की भी स्थापना करता है। मुद्रा आदि का प्रयोग सुप्त आंतरिक विशिष्ट शक्तियों को जागृत कर व्यक्ति को सफलता के चरम पर पहँचाता है। __इस शोध के माध्यम से युवा वर्ग में धर्म के प्रति स्थापित होती मिथ्या धारणाओं का निवारण होगा तथा धर्म का विघटित एवं विश्रृंखलित होता स्वरूप सही दिशा को प्राप्त करेगा। सुज्ञ वर्ग इसका उपयोग कर अपने अंतर पटल उद्घाटित करें और धर्म के मर्म को जानते हुए लौकिक एवं लोकोत्तर समृद्धि के राजमार्ग पर अग्रसर हो सकें, इसी के साथ
जीवन में हमारे पारदर्शिता आ सके कथनी और करनी में समरूपता ला सकें शास्त्र निहित नैतिक मूल्यों को जीवन मंत्र बना सकें धर्म सूत्रों का समन्वय विज्ञान के साथ करवा सकें
इन्हीं मंगल आकांक्षाओं सह
एक ऊँची उड़ान...