________________
174...शोध प्रबन्ध सार
इस अध्याय में मद्राओं के आध्यात्मिक एवं साधनात्मक स्वरूप का वर्णन करते हुए उसकी विधि एवं निर्देश दिए गए हैं। इसी के साथ कौनसी मुद्रा की साधना किन ग्रन्थियों आदि को प्रभावित करती हैं एवं उनके सुपरिणाम क्या है इसका भी सुस्पष्ट वर्णन किया गया है।
इस अध्याय लेखन का मुख्य प्रयोजन जन मानस को योग साधना के मार्ग पर सुप्रवृत्त करना है।
इस कृति के तृतीय अध्याय में विशिष्ट प्रकार के अभ्यास द्वारा जिन मुद्राओं को सिद्ध किया जाता है उनके रहस्यपूर्ण स्वरूप का विवेचन किया है।
हठयोग एक कठिन साधना है। यह शरीर को साधने की मुख्य क्रिया है। हठ शब्द में 'ह' का अर्थ शरीर से बाहर जाने वाली वायु (प्राण) और 'ठ' शरीर के भीतर जाने वाली वायु (अपान) का सूचक है। इसीलिए प्राण वायु और अपान वायु का संयोग करने वाली क्रिया को हठयोग कहते हैं।
इस अध्याय में हठयोग की कठिन मुद्राओं को सरल एवं सुगम्य बनाने के लिए उनका विस्तृत विवेचन किया है। मुद्रा साधना हेतु ध्यान रखने योग्य सावधानियों को निर्देश रूप में विशेष रूप से सूचित किया है। इन मुद्राओं के अभ्यास द्वारा प्राप्त होने वाले सम्यक परिणामों का भी सूचन किया गया है।
इस खण्ड के चौथे अध्याय में चिकित्सा उपयोगी यौगिक मुद्राओं का चार्ट दिया है जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से उपादेय है। ____ मुख्यतः इस अध्याय में मुद्राओं द्वारा होने वाले रोग निदान की सूची दी गई है। यह शारीरिक रोगों के शमन, मानसिक शांति की प्राप्ति एवं आध्यात्मिक उत्कर्षता में सहयोगी है।
__ अंतिम पाँचवें अध्याय में इस शोध खण्ड के लेखन में सहयोगी ग्रन्थों की सूची, मुद्रा निर्माण में उपयोगी विशिष्ट पारिभाषिक शब्दों का अर्थ तथा मुद्रा साधना के द्वारा प्रभावित होने वाले चक्र, ग्रन्थि एवं तत्वों का वर्णन किया है।
इस अध्याय का मुख्य ध्येय हठयोग की कठिन भाषा और मुद्रा दोनों को सरल एवं सुगम्य बनाना है।
इस खण्ड लेखन का मुख्य ध्येय योग साधना की पुरातन परम्परा को चिर जीवंत रखना है। ऋषि-महर्षियों द्वारा विविध प्रयोग एवं साधनाओं के आधार पर चुनिंदा एवं रहस्यभूत योग साधनाएँ ही जन सामान्य में लाई गई। उनमें भी सरल, सुबोध एवं लाभदायी प्रवृत्तियाँ ही चिरस्थायी बन पाई। इन विशिष्ट