SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 158...शोध प्रबन्ध सार भाग का प्रथम खण्ड मुद्रा योग की जानकारी के लिए एक Short encyclopedia है। आगे के खण्डों की संक्षिप्त पृष्ठ भूमि है। साधना में सिद्धि प्राप्त करने हेतु सहयोगी चरण है। इस खण्ड के माध्यम से आम जनता मुद्रा योग से परिचित हो पाएं तथा अपने दैनिक जीवन में इस साधना के द्वारा विविध क्षेत्रों में ऐच्छिक लाभ प्राप्त कर पाएं यही लघु प्रयास किया है। खण्ड-16 नाट्य मुद्राओं का मनोवैज्ञानिक अनुशीलन मुद्रा योग पर इस शोध कार्य को गति देते हुए सोलहवें खण्ड में नाट्यकला संबंधी मुद्राओं के महत्त्व, उसके विकास आदि पर चर्चा की है। खण्ड-15 में मुद्रा योग के आवश्यक सुविस्तृत परिचय के बाद सर्वप्रथम नाट्य मुद्राओं को स्थान क्यों दिया गया? इसकी चर्चा हम पूर्व में विविध खण्डों का निरूपण करते समय कर चुके हैं। विविध कलाओं में नाट्य कला का अप्रतिम स्थान है। आदि काल से इसे विश्व संस्कृति की प्राचीनतम धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है। नाट्य कला का विकास मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति के रूप में हुआ। पूर्वकाल से अपने आनंद, हर्ष आदि की अभिव्यक्ति हेतु मनुष्य ने नृत्य, नाटक, संगीत आदि का सहारा लिया है। नाट्य में वाचिक एवं कायिक अभिनय के साथ हस्त मुद्राओं से रहस्यमय अर्थ की अभिव्यक्ति की जाती है। ___मुद्राओं का मूल एवं अर्थ पूर्ण स्वरूप नाट्यकला में ही अभिव्यक्त होता है। भारतीय विद्वानों ने इस कला को अक्षुण्ण बनाए रखने एवं इसके महत्त्व को दिग्दर्शित करने हेतु अनेक नाट्य शास्त्रों की रचना की है। ऐतिहासिक प्रमाणों से अवगत होता है कि नाट्य शास्त्र के आदि कर्ता भरतमुनि ईसा पूर्व प्रथम / द्वितीय शताब्दी के थे। वहीं से नाट्य मुद्राओं के ऐतिहासिक उल्लेख प्राप्त होते हैं। नाट्य मुद्राओं का प्रयोग मात्र नाट्य कला में ही नहीं अपितु हमारे दैनिक जीवन में भी नित्य प्रति देखा जाता है। नाट्य कला में मनुष्य के विभिन्न भावों की हुबहु अभिव्यक्ति की जाती है और कहीं न कहीं यह अभिव्यक्ति हमारे दैनिक जीवन शैली से ही प्रभावित है।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy