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156... शोध प्रबन्ध सार
खण्ड - 15
मुद्रा विज्ञान एक अनुसंधान मौलिक संदर्भों में
मुद्रा योग एक अभूतपूर्व साधना है। प्रत्येक क्षेत्र में इसकी महत्ता स्वीकार की गई है। अध्यात्म के क्षेत्र में मुद्रा की जितनी महत्ता है उतनी ही आवश्यकता उसकी विज्ञान और भौतिक संदर्भों में भी है।
में
खण्ड-15 मुद्रा विज्ञान की इसी व्यापकता को सिद्ध करता है। इस खण्ड मुद्रा विज्ञान की प्राथमिक भूमिका के विषय में चर्चा की गई है। यहाँ मुद्रा के सामान्य स्वरूप तथा उसके विविध पक्षों को उजागर करते हुए उसके रहस्यात्मक एवं ऐतिहासिक तथ्यों को उद्घाटित किया है।
यह खण्ड आगे के छ: खण्डों ( 16-21 ) के लिए मुख्य भूमिका रूप है। इसी के साथ इसमें उन खण्डों का स्वरूप एवं उसका प्रमुख परिचय भी दिया गया है। यह खण्ड पाँच अध्यायों में विभाजित है ।
प्रथम अध्याय मुद्रा का स्वरूप एवं उसकी सामाजिक अवधारणाओं को स्पष्ट करता है। इस अध्याय में विभिन्न ग्रन्थों के आधार पर मुद्रा के भिन्न-भिन्न अर्थ बतलाते हुए उसकी व्यवहार एवं अध्यात्म प्रधान परिभाषाओं को स्पष्ट किया है।
इस अध्याय लेखन का मुख्य हेतु मुद्राओं के मार्मिक स्वरूप से परिचित करवाते हुए जन सामान्य को उनके प्रयोग हेतु रूचिवंत बनाना है ।
इस खण्ड के द्वितीय अध्याय में मुद्रा प्रयोग के रहस्यात्मक पक्षों को उद्घाटित किया है। मुद्राओं का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है अतः सर्वप्रथम इसमें प्रयोजन आदि के आधार पर मुद्रा के विभिन्न प्रकारों की चर्चा की गई है। तदनुसार विभिन्न प्रसिद्ध ग्रन्थों का मुद्रा योग के विषय में क्या अभिमत है ? मुद्रा योग की महत्ता क्यों है ? आदि को स्पष्ट किया है। इससे मुद्रा विज्ञान की प्रामाणिकता एवं प्राचीनता सिद्ध होती है। इसके बाद आज के वैज्ञानिक युग में जीवन के सर्वतोमुखी अभ्यास के लिए मुद्रा योग की आवश्यकता एवं उपादेयता को प्रस्तुत किया है। विभिन्न यौगिक साधनाओं में मुद्राओं का महत्त्व एवं आवश्यकता किस प्रकार रही हुई है ? तथा किस प्रकार मुद्रा योग समस्त यौगिक साधनाओं को पूर्णता प्रदान करता है ? आदि का मार्मिक विवरण प्रस्तुत