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________________ 134...शोध प्रबन्ध सार प्रतिष्ठा विधान के अनन्तर आयोजित पंचकल्याणक आदि महोत्सव से सर्वप्रथम तो हृदय में शुभ भाव जागृत होते हैं। संसार के प्रति वैराग्य भाव उत्पन्न होता है। परमात्मा का जीवन एवं उनकी एक-एक घटना जीवन जीने की कला का ज्ञान करवाती है। धार्मिक दायित्वों के प्रति जागरूक करती है। इस तरह यह अनुष्ठान सर्वविरति एवं देशविरति के भावों को पृष्ट करता है तथा सिद्धत्व प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त करता है। जिस प्रकार राजतिलक के बिना राजकुमार राजा नहीं बनता, शपथ लेने से पूर्व मंत्री, डॉक्टर, पुलिस आदि उस पद के संवैधानिक अधिकारी नहीं कहलाते उसी तरह अंजनशलाका प्रतिष्ठा आदि विधानों के बिना प्रतिमा संपूज्य नहीं बनती। प्रतिमा साक्षात अरिहंत की प्रतिकृति होती है। उसमें वीतरागमयी मुद्रा, संपूर्ण ज्ञानमयी गुणवत्ता, परमानंदमयी स्वरूपता, सर्व जीवों के प्रति कल्याण बुद्धि आदि समस्त गुणों की स्थापना प्रतिष्ठा विधि द्वारा की जाती है। __इस प्रकार प्रतिष्ठा महोत्सव भावों के प्रशस्तीकरण एवं शुद्धिकरण में सहायक बनता है। व्यक्ति के अन्तर्मन से दुर्भावों का परिहार करता है। सद्भावों का सर्जन करता है। समुदाय में रहने की कला, आपसी सामंजस्य, समभाव आदि के भावों का पोषण करता है। वर्तमान संदर्भो में प्रतिष्ठा विधान की समीक्षा आवश्यक क्यों? यदि आधुनिक संदर्भो में विचार करें तो आज प्रतिष्ठा महोत्सवों का आयोजन तो बृहद् स्तर पर होने लगा है परंतु उसकी मौलिकता लुप्त होती जा रही है। आज प्रतिष्ठा विधान विषयक कई गलत धारणाएँ लोगों के मन मस्तिष्क में व्याप्त हो चुकी है। कई प्रमुख क्रियाओं का स्वरूप परिवर्तित होते-होते अपने मूल उद्देश्य से च्युत हो चुका है। कई मुख्य क्रियाएँ यथार्थ रहस्य को समझे बिना मात्र परम्परा अनुकरण रूप की जाती है। आज प्रतिष्ठा विधानों का मुख्य उद्देश्य उत्तमोत्तम व्यवस्था, राजशाही भोजन, बड़े-बड़े लोगों एवं सुप्रतिष्ठित विधिकारकों का आगमन आदि ही रह गया है। प्रतिष्ठा में जितनी अधिक आय होती है उस प्रतिष्ठा को उतना ही श्रेष्ठ माना जाता है। सर्वोत्तम भोजन करवाने हेतु कई बार भक्ष्य-अभक्ष्य रात्रि भोजन आदि का विवेक भी नहीं रखा जाता। यह सभी बातें प्रतिष्ठा के तात्त्विक स्वरूप को क्षीण करती जा रही है। आज का सुशिक्षित युवा वर्ग इसी कारण धर्म अनुष्ठानों से दूर होता जा रहा है। क्योंकि आज हर आयोजन का मुख्य हेतु पैसा बन गया है।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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