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________________ 122...शोध प्रबन्ध सार कई लोग प्रश्न करते हैं कि परमात्मा तो वीतरागी हो चुके हैं, फिर उनका पूजन आदि क्यों किया जाता है? परमात्मा वीतरागी है अत: उनकी पूजा या निंदा से उन्हें कोई फरक नहीं पड़ता। वस्तुतः परमात्मा को पूजा की कोई आवश्यकता नहीं है। साधक परमात्मा की प्रभुता को पाने के लिए उनकी पूजा करता है। जल पूजा के माध्यम से वह अपनी आत्मा पर लगे कर्म मल को उतारने की भावना करता है। पुष्प पूजा के द्वारा स्वयं के हृदय को परमात्मा के समान कोमल एवं सद्गुणों से सुवासित करने की भावना करता है। अक्षत पूजा के द्वारा अपने सच्चे आत्म स्वरूप की अनुभूति करता है। भाव पूजा के द्वारा परमात्मा के गुणों का चिंतन करते हुए अपने आप को परमात्म स्वरूप प्राप्ति के पथ पर अग्रसर करता है। जिनपूजा एक वैज्ञानिक प्रक्रिया कैसे? जिनपूजा मुख्य रूप से एक अध्यात्म सभर क्रिया है, परंतु हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना एवं ज्ञान विशारदता के माध्यम से इसमें अनेक अन्य तथ्यों का समावेश किया है। भारतीय संस्कृति एक प्राकृतिक संस्कृति है। प्रकृति के साथ चलने से अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति निश्चित है। जिनपूजा पूर्णतः प्रकृति पर आधारित है। जिनपूजा हेतु शारीरिक स्वच्छता को महत्त्व दिया गया है जैसे- देह शुद्धि, वस्त्र शुद्धि, मुख शुद्धि आदि। इसी प्रकार पूजा उपयोगी सामग्री एवं स्थान की शुद्धता को भी महत्त्वपूर्ण माना गया है। जिनपूजा में प्रयुक्त सुगन्धित द्रव्य जैसे कि पुष्प, चन्दन, केशर, इत्र आदि का शारीरिक निरोगता एवं मानसिक प्रसन्नता से घनिष्ठ सम्बन्ध है। अनेक रोगों का निवारण इनके कारण स्वयमेव हो जाता है। पंचामृत के स्पर्श से नाखून का विष हल्का पड़ जाता है। फूलों की सुगन्ध मस्तिष्क सम्बन्धी रोग उत्पन्न नहीं करती। धूप विषैले जीवों से बचाव करता है। शिखरजी, पालीताना आदि के पहाड़ चढ़ने से रक्त की शुद्धि होती है तथा रक्तचाप नियंत्रित रहता है। ___ अनामिका अंगुली द्वारा पूजा करने से हृदय शक्तिशाली बनता है एवं तत्सम्बन्धी रोगों का निदान होता है। पूजा हेतु नंगे पैर चलने से एक्यूप्रेशर हो जाता है। पूजा में प्रयुक्त विविध मुद्राएँ भिन्न-भिन्न चक्रों को विशेष रूप से जागृत करती हैं। भाव पूजा के दौरान प्रणिधान त्रिक के परिपालन से एकाग्रता में वृद्धि होती है। तनाव मुक्ति के लिए जिनपूजा एक सफल प्रयोग है।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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