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शोध प्रबन्ध सार ...81
स्कूल की जरूरत होती है। आज के समय में Computer और Internet पर हर ज्ञान उपलब्ध है। फिर भी हम बच्चों को स्कूल भेजते हैं क्योंकि जो माहौल, संस्कार एवं वातावरण स्कूल में उपलब्ध हो सकता है, वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं हो सकता। वैसे ही आगम शास्त्रों का ज्ञान ग्रहण करते समय जो मानसिक, वैचारिक एवं कायिक स्थिरता चाहिए वह गुरुनिश्रा में ही प्राप्त हो सकती है। जिनवाणी की उत्सूत्र प्ररूपणा न हो एवं सम्यक रूप से वह आचरण में आ सके तद्हेतु योगोद्वहन आवश्यक है।
योगोद्वहन के माध्यम से शिष्य के अंतर में ऋजुता, लघुता, सरलता आदि गुण विकसित किए जाते हैं। आज के युग में ज्ञान तो उत्तरोत्तर बढ़ा है किन्तु विनम्रता और सहिष्णुता घटती जा रही है। आज स्कूल और कॉलेजों में शिक्षकों का जो हाल है, जिस तरह का व्यवहार शिक्षकों के साथ किया जाता है, वह भारतीय समाज के लिए शर्मनाक है।
आज की इन परिस्थितियों में योगोद्वहन, ज्ञानार्जन के साथ गुरुजनों के विनय आदि की शिक्षा देता है। समाज में एक समुचित शिक्षण व्यवस्था (Education management) हेतु प्रेरणा देता है। भले ही आज योगोद्वहन मात्र एक पारम्परिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है। फिर भी अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में इसकी मूल्यवत्ता को नकारा नहीं जा सकता।
योगोद्वहन की इसी महत्ता को देखते हुए इस शोध कृति में मूलत: आगम शास्त्रों के अध्ययन सम्बन्धी विधि-विधानों की चर्चा की है। तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक दृष्टि से परिशीलन करते हुए इस खंड को निम्नलिखित सात अध्यायों में वर्गीकृत किया है
योगोद्वहन का सम्बन्ध मूल रूप से आगम अध्ययन से रहा हुआ है अत: प्रथम अध्याय में जैन आगमों से सम्बन्धित अनेक पक्षों का विवेचन किया गया है। आगम अर्थात आप्त वचनों का संकलन। जैन धर्म रूपी सुंदर प्रासाद आगम वचनों की नींव पर ही खड़ा है। जैन आचार, विचार एवं व्यवहार का प्रवर्तन इन्हीं के आधार पर किया गया है।
इस अध्याय में आगम शब्द का अर्थबोध करवाते हुए आगम के प्रकार, आगमों की मौखिक परम्परा का इतिहास, आगमों का विच्छेद कब से? आगमों की भाषा एवं उनके रचियता तथा आगमों का संक्षिप्त परिचय आदि पक्षों को