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________________ शोध प्रबन्ध सार ...xi कोलकाता प्रवास एवं 2011 के बड़ा बाजार चातुर्मास ने आपको रत्नान्वेशी से आत्मान्वेशी बना दिया है। आपने उन्हें अपने गुरु रूप में तो माना ही है परन्तु एक बहन के रूप में भी उन्हें जीवन में स्थान दिया है। कोलकाता में रहते हुए उनके प्रतिदिन दर्शन करना आपका अटल नियम था। आप अपनी तरफ से अपनी बहन महाराज का चातुर्मास करवाने की भावना भी रखते हैं। कोलकाता से शिखरजी विहार में आपने समस्त व्यापारिक कार्य छोड़कर अपनी अमूल्य सेवाएँ प्रदान की। __आप अपने सद्गुणों की आभा को बढ़ाते हुए इसी भाँति आत्मोन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहें एवं अपने सद्गुणी जीवन के द्वारा जिनशासन की बगिया को महकाते रहें। विदुषी बहन महाराज के समस्त साहित्य को आप प्रकाशित करवाना चाहते थे। परंतु इन भावों को साकार रूप देना संभव नहीं था अत: आपके भावों की उत्कंठा देखते हुए 21 ग्रंथों की शोध सारांशिका जिसमें समस्त विषयों का संक्षिप्त वर्गीकरण है उसके प्रकाशन का पुण्य लाभ आपको प्राप्त हुआ है। अंत में आपके गुण मंडित जीवन के लिए यही कहेंगे वह सीपी ही क्या जिसके भीतर चमक न हो वह मोती ही क्या जिसमें पानी की दमक न हो जीवन जीने को तो जीते है हर जीव जगत में पर वह जीवन ही क्या जिसमें चन्द्र गुणों की महक न हों।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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