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________________ महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन "मध्ये दिन प्रातरिवाथ सायं यावच्छरीरं तनुमानमायाम् । स्मरेदिवानी परमात्मनस्तु सदैव यन्मङ्गलकारिवस्तु ॥"" . (म) प्रोषधोपास व्रत जैव-धर्माचार्यों ने इस व्रत को सामयिक-शिक्षावत के स्थायित्व के लिए प्रावश्यक माना है। उनका कहना है कि प्रत्येक काल के दोनों पक्षों के पद्धभाग में प्रोषधोपवास अवश्य करना चाहिए। प्रोषधोपवास करने के दिन से पहले के दिन दोपहर से ही उपवास कर लेना चाहिए। इस समय पुरुष को राग-द्वेष से रहित होकर एकान्त सेवन करना चाहिए। वहां धर्म का चिन्तन करते हुए दिन बिताना चाहिये। तत्पश्चात् सन्ध्याकालीन क्रियामों को करके पवित्र विस्तर पर स्वाध्याय करते हुए निद्रा रहित हो रात्रि को बिताना चाहिये। श्रीशानबागर के अनुसार महीने की अष्टमी मोर चतुर्दशी तिथि को सोलह प्रहर का उपवास प्रारम्भ गरु के समीप करना चाहिए मोर समाप्ति पर अतिथि को भोजन कराकर ही स्वयं भोजन करना चाहिये । (ग) मोगोपनोग परिणाम शिक्षा व्रत सम और मासक्ति को हटाने के लिए इन्द्रिय के विषयों को मतीव परिमित संख्या में जमा हो भोगोपभोगपरिणाम' नामक शिक्षाव्रत है । शरीर को बहुत माग . व पहचाने गले तथा मावर जीवों को हिंसा के हेतुभूत जिमीकन्द, मूली, भदरक, मक्खन इत्यादि अनुपसेव्य पार्यों का परित्याग कर देना चाहिए। हम देखते है कि श्री ज्ञानसागर जी ने पुरुष को भोगोपभोष के पानी प्रति त्याग का उपदेश किया है : "भोगोपभोगतो वांछा भवेत् प्रत्युत दारुणा । वह्निः किं शान्तिमायाति मिप्यमाणेन दारुणा? ॥ ततः हुँर्यान्महाभाग इच्छाया विनिवत्तये । सदाऽऽनन्दोपसम्पत्त्य त्यागस्येवावलम्बनम् ॥५ (ङ) प्रतिवि-संबिमामशिक्षात वैदिक साहित्य में मानव मात्र को प्रतिषि-वत्सलता की शिक्षा देते हुए 'प्रतिषिदेवो भव' जैसे वाक्य प्रस्तुत किये गए हैं। जैन धर्माचार्यों ने भी प्रतिषि को सेवा को 'व्रत' का नाम दिया है। उनके अनुसार दाता श्रावक जब दिगम्बरवंशधारक साधु को नवषाभक्तिसहित माहारादि द्रव्य-विशेष का दान करता १. सुदर्शनोदय, ६१ २. जैनधर्मामृत, ४१६६-१.२ ३. सुदर्शनोदय, ९ एवं मागे का गीत । ४. जैनधर्मामृत, ४११०३-१.५ . ५. सुदर्शनोदय, १।४०.४१
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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