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महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन
दत्तचरित्र में दो-दो बार दयोदय-चम्पू में तीन बार ।' दिगम्बर मुनि बनने के लिए कवि ने भी वस्त्रपरित्याग, केशलुंचन, मौनधारण, सहिष्णुता, एकाकिविहरण, मयूरपिच्छ-कमण्डलु धारण इत्यादि नियमों के विषय में प्रेरित किया है। .. मुनि
___ साधु की इस प्रास्था का कवि ने अपने काव्यों में ७ बार उल्लेख मात्र किया है-जयोदय और सुदर्शनोदय में एक-एक बार तथा श्रीसमुद्रदत्तचरित्र में पांच बार । ऋषि
साधु को इस अवस्था का वर्णन केवल सुदर्शनोदय में, और वह भी एक बार, माया है । सुदर्शनोदय में वर्णित एक ऋषिराज ने ही सेठ वृषभदास को दीक्षा देकर उपकृत किया है। योगी
श्री ज्ञानसागर ने योगी पुरुष की विशेषतामों को जनधर्म सम्मत ही बताया है। उनके अनुसार सुख की प्राप्ति हेतु इच्छामों का निरोष करने वाले, चतुनिकाय के देवगणों से सुपूजित, चञ्चल मन का नियन्त्रण करने वाले, इन्द्रिय निग्रह में तत्पर भोर बाह्य प्राडम्बर से रहित पुरुष को योगी कहा जाता है।
महाकवि ज्ञानसागर ने अर्हन्त परमेष्ठी के वे गुण बताए हैं, वो जैन-दर्शना
१. (क) जयोदय, २८।६६
(ख) वीरोदय, १०।२४-२६ (ग) सुदर्शनोदय, ४।१४, ८।३२ (ङ) दयोदयचम्पू, १॥ श्लोक २२ के पूर्व का गद्यभाग, श्लोक १७ के बाद
का गयभाग, ७ श्लोक ३८ के पूर्व का गद्यभाग । २. (क) वीरोदय, १०॥२४॥३७
(ख) दयोदयचम्पू, श्लोक ३८ के पूर्व का गद्य भाग। ३. (5) जयोदय, ११७७
(स) सुदर्शनोदय, २०२४-२५
(ग) श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, २०२७, ४१६, १७, १८, ५॥३० ४. सुदर्शनोदय, ४११-१४ ५. 'इच्छानिरोधमेवातः कुर्वन्ति यतिनायकाः।
पादो येषां प्रणमन्ति देवाश्चतुरिणकायकाः ॥ मारयित्वा मनो नित्यं निगलन्तीन्द्रियाणि च । बाह्याटम्बरतोऽतीतास्ते नरा योगिनो मताः ॥'
-बही, ६।४२-४३