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महाकवि ज्ञानसागर के काम्य-एक अध्ययन
काग्यों में प्राय: छन्दों का मिश्रित प्रयोग मिलता है। किन्तु यह प्रयोग रसचणा में बाधक नहीं बना है।
(5) गीत राग-रागिणी--
ताल एवं रागनिबद्ध कविता गाई जाने पर गीत की संज्ञा धारण कर लेती है। लयबद्धता को सुन्दर कविता और संगीत का गुण माना गया है । साहित्य और संगीत का बड़ा भारो सम्बन्ध है । इन दोनों को एक ही स्थान पर उपस्थिति सहृदय को प्राह्लाद प्राप्त कराने में सहायक है। अत: यदि कोई कवि अपने काव्य में संगीत को भी शामिल कर लेता है तो उसका काव्य प्रधिक मनोरम हो जाता है।
महाकवि ज्ञानसागर के काव्यों में गीत -
श्रीज्ञानसागर ने अपने संस्कृत-काव्यों में स्थान स्थान पर अपनी संगीतप्रियता का परिचय दिया है। कभी बसन्त की शोभा से प्राकृष्ट होकर तो, कभी
रात्रि के भयानक अन्धकार से डरकर, कभी प्रभातकालीन सौन्दर्य से प्रभावित होकर, तो कभी भक्तिवश उन्होंने गीतों के रूप में भी अपने हृदय के उद्गार प्रकट किये हैं। उनके कान्य में गाए गए गीत क्रमशः प्रभाती, काफीहोलिकाराग, सारंगराग, श्यामकल्याणराग और सौराष्ट्रीय रागों में निबद्ध हैं। कुछ गीत 'कबाली' शैली में भी पाए जाते हैं।
कवि के काव्यों में प्राप्त गीतों की संख्या ३७ है। इनमें से चार गीत जयोदय महाकाव्य के २३वे सगं में हैं; १ गीत २५ सर्ग में है, १ गीत दयोदयचम्पू के सप्तम लम्ब में है, ८ गीत सुदर्शनोदय के पंचम सर्ग में हैं, ६ गीत षष्ठ सर्ग में हैं, ८ गीत वें सर्ग में है और ३ गीत नवें सर्ग में हैं।
__ 'जयोदय' एवं दयोदयचम्पू' में गीत किन रागों में गाए गए हैं, ऐसा उल्लेख नहीं मिलता। उन्हें गायक एवं संगीतकार को इच्छा पर छोड़ दिया गया है। सुदर्शनोदय काव्य में २ गोत प्रभात राग भैरव में, दो गोत काफो होलिकाराग में, ६ गीत सारंगराग में, २ गीत श्यामकल्याण राग में, ११ गीत दंशिक सौराष्ट्रीय राग में, ६ गीत कब्बाली शैली में, १ गीत छदचाल नामक शैली में प्रौर १ गीत रसिकराग में निबद्ध हैं। प्रभाती, काफीहोलिका, सारंग; श्यामकल्याण- ये चार राग तो संगीत के बहुचर्चित राग हैं । दैशिक सौराष्ट्रीय क्षेत्रधिशेष का राग है। कन्वाली शेली माज के उर्दूप्रिय सहृदयसमाज की प्रतिप्रसिद्ध गायन शैली है । रसिक राग ब्रजप्रवेश में प्रसिद्धिप्राप्त रसिया नामक राग का ही नामान्तर प्रतीत होता है । किन्तु छन्दचाल नामक गायन-शैली का संगीतशास्त्र में कोई पारिभाषिक