________________
महाकवि भानसागर के संस्कृत-प्रन्थों में कलापक्ष
३६१
पप्रबन्ध
"विनयेन मानहीनं विनष्टनः पुनस्तु नः । मुनये नमनस्पानं मानध्यानधनं मनः॥"
-बोरोक्य, २२॥३६
कमल में पंखुड़ियां पौर पराग ये दो वस्तुएँ विद्यमान होती हैं। प्रतः पप्रबन्ध की रचना में एक प्रभर बीच में पराम के रूप में और शेष प्रक्षर पंखुरियों के रूप में विद्यमान रहते हैं। उपर्युक्त श्लोक में 'न' अक्षर पराग-रूप में स्थित है। शेष प्रक्षर अनुलोम-प्रतिलोम विधि से पढ़े जाते हैं, अर्थात् पंखुड़ी से मध्य में भोर मध्य से पंखुड़ी में पढ़ा जाता है।