________________
महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में कलापक्ष
(3) बयोवङ्गागत चक्रबन्ध
९९
भो
"जयतादयतावशतो रसतोऽसो नरेन्द्रसंयोगाम्, य रह शारदासाधारणः पद्माभिरुचिः शुचिग: । गगननदीमद्याप सुललिता राजहंस प्राख्यातस्तत्राम्भोजनिकायगत मार्गाविरगतयातः ॥ "
AMP
६
柒
(2)
FE F S AN AM MAS
का
३ ५ ६ ०५. 9 2
F
४ ॐ
1:10
P
ख) ब ल ख क्र 44 9 9
— दयोदम, १३ ११६
144
Bic
A
(h)
←
कर
३४३
* C
प्रस्तुत चक्रबन्ध के घरों में विद्यमान प्रथमाक्षरों को पढ़ने से !जयोगङ्गागत'
वाक्य निकलता है, जो इस सगं की उस घटना की ओर संकेत करता है जहाँ विवाह के पश्चात् जयकुमार गङ्गा नदी के तट पर पहुँचते हैं।