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________________ पूरे भारत में महाकवि ज्ञानसागर की रचनाओं के अध्ययन/अनुसंधान ने तीव्र गति प्राप्त की तो अनेक शोधार्थियों को इस दिशा में लेम्प पोस्ट की आवश्यकता थी । अनेक विद्वानों के सुझाव भी आये, सभी शोधार्थियों, शोध केन्द्रों को डॉ. किरण टण्डन की आदर्श शोध प्रबन्ध केन्द्र द्वारा उपलब्ध कराया जाय तथा यह महाकवि ज्ञानसागर पर लिखित प्रथम कोटि का प्रथम शोध प्रबन्ध है । अतः इसे प्रकाशित करते हुए हमें परम गौरव का अनुभव हो रहा है । मैं इस अवसर पर ग्रन्थ की स्वनामधन्य लेखिका डॉ. किरण टण्डन के प्रति आभार/कृतज्ञता और श्रद्धाभाव ज्ञापित करता हूँ, कि उन्होंने अनेक विसंगतियों/विपत्तियों से संघर्ष करते हुए आचार्य श्री ज्ञानसागर की रचनाओं से संस्कृत जगत् को न केवल परिचित कराया बल्कि आचार्य ज्ञानसागर का अध्ययन अनुशीलन करने के लिये विद्वानों को बाध्य किया है । भारत की विद्यानुरागी समाज आपकी चिर ऋणी रहेगी । केन्द्र को प्रकाशनार्थ आपने स्वीकृति दी उसके लिये भी हम आपके आभारी है और आभारी है, आपके गुरुवर श्रीयुत हरिनारायण जी दीक्षित के जिन्होनें प्रस्तुत ग्रन्थ पर भूमिका लिखकर ग्रन्थ का गौरव बढ़ाया है। केन्द्र पूर्व प्रकाशित सभी ग्रन्थों के प्रकाशन में उदारता प्रदर्शित करने वाले महानुभावों के प्रति आभार व्यक्त करता है, जिनके सहयोग से हमारे कार्यों को गति मिली है। हम नतमस्तक है पूज्य मुनिवर श्री सुधासागर जी के प्रति श्रद्धानवत है उनके तीर्थचरणों में, जिनकी कृपा-कटाक्ष से अल्पकाल में केन्द्र द्वारा अनेक महनीय, परिश्रम साध्य दुसह कार्य सहज रूप में सम्पादित हो गये । केन्द्र के हर कार्य में तथा प्रत्येक प्रगति पक्ष में मुनिश्री का आशीष ही, केन्द्र की सफलता सटीक हेतु है । जग को अनुपम निधियाँ निशदिन लुटाने वाले अनगार के प्रति आभार व्यक्त करने की शक्ति सामर्थ्य इस आकिञ्चन में नहीं । इस ग्रन्थ का प्रथम प्रकाशन ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली द्वारा किया गया था। प्रकाशक का आभार मानते हुये इस ग्रन्थ को सहज सुलभता हेतु हमारा केन्द्र इसे पुनः प्रकाशित कर रहा है । आशा है पाठक गण इस ग्रंथ को अपने हाथों में पाकर आनन्दित होंगे। पं. अरूणकुमार शास्त्री ब्यावर (राज.) बृहद्-चतुष्टयी - जयोदय महाकाव्य राष्ट्रिय विद्वत्संगोष्ठी (दिनांक 29.9.95 से 3.10.95) मदनगंजकिशनगढ़ में देश के विविध भागों से समागत हम सब साहित्याध्येता महाकाव्य के अनुशीलन निष्कर्षों पर सामूहित काव्यशास्त्रीय विचारोपरान्त वाणीभूषण महाकवि भूरामल शास्त्री द्वारा प्रणीत जयोदय महाकाव्य को संस्कृत साहित्येतिहास में बृहत्त्रयी संज्ञित शिशुपालवध, किरातार्जुनीय एवं नैषधीयचरित महाकाव्य के समकक्ष पाते हैं। अतः हम सब बृहत्रयी संजित तीनों महाकाव्यों के साथ जयोदय महाकाव्य को सम्मिलित कर बृहच्चतुष्टयी के अभिधान से संज्ञित करते हैं । -
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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