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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में भावपक्ष
कृतान् प्रहारान् समुदीक्ष्य हारायितप्रकारांस्तु विचारधारा। चाण्डालचेतस्युदिता किलेतः सविस्मये दर्शकसञ्चयेऽतः ॥
अहो ममासिः प्रतिपक्षनाशी किलाहिराशीविष माः किमासीत् । ___ मृणाल कल्प: सुतरामना-तूलोक्ततल्पं प्रति कोऽत्र कल्पः ॥""
यहां अद्भुत रस का आश्रय है-चाण्डाल और जनसमूह । पालम्बनविभाव है-सुदर्शन । उसके गले में तलवार के प्रहार का प्रभाव न होना उद्दीपन विभाव है। रोमाञ्च इत्यादि मनुभाव हैं । जड़ता, वितकं, पावेग इत्यादि व्यभिचारिभाव हैं। पत्सल रस
सुदर्शनोदय में वत्सल रस का वर्णन तीन स्थलों पर हुमा है :--
(क) वत्सल रस की अभिव्यक्ति कराने वाला प्रथम स्थल वह है जहाँ मुनिराज वृषभदास को बताते हैं कि वह एक श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति करेगा। निराज के मुंह से यह बात सुनकर सेठ वृषभदास और उनकी पत्नी दोनों बहुत प्रसन्न होते
"पयोमु वो गर्जनयेव नीतो मयूरजाताविव जम्पती तो। उदनाङ्गेरुहमम्प्रतीतो पुनेगिरा मोदमही पुनीतो॥"२
यहाँ पर सेठ और उसकी पत्नी वत्सल रस का प्राश्रय हैं। उत्पत्स्यमान पुत्र पालम्बन विभाव है। मुनि की वाणी वात्सल्य भाव को उद्दीप्त करने के कारण उद्दीपन विभाव है । रोमाञ्चित होना इत्यादि अनुभाव हैं। हर्ष, पावेग इत्यादि व्यभिचारिभाव है।
(ख) वत्सल रस की अभिव्यञ्जना कराने वाला दूसरा स्थल वह है जहाँ सुदर्शन के जन्म का समाचार सुनकर सेठ के हृदय का वात्सल्य भाव उमड़ने लगता
"सुतजन्म निशम्य भृत्यतः मुमुदे जानुजसत्तमस्ततः । प्ररिपालितताम्रचूडवाग रविणा कोकजन: प्रगे स वा ।। प्रमदाश्रुभिराप्लुतोऽभित: जिनपञ्चाभिषिचे च भक्तितः । प्रभुभक्तिरुताङ्गिनां भवेत्फलदा कल्पलतेव यद्भवे ॥ X X
X अवलोकयितुं तदा धनी निजमादर्श इवाङ्गजन्मनि । श्रितवानपि सूतिकास्थलं किम बोजव्यभिचारि अङ्कुरः ॥
परिपातुमपारयंश्च सोऽङ्गजरूपामृतमद्भुतं दृशोः । 1. सुदर्शनोदय, ८।५-६ २. बही, २१४१