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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में भावपक्ष २६३ प्रध्यात्मविद्यामिव भव्यवन्दः सरोजराजि मधुरा मिलिन्दः । . प्रीत्या पो सोऽपि त का सगोरगात्री यथा चन्द्रकलां चकोरः ॥"" जयकुमार प्रौर सुलोचना एक दूसरे को देखकर परम सन्तुष्ट हैं । सुलोचना जयकुमार को देख कर वैसे ही सन्तुष्ट हुई, जसे शिव जी को देखकर पार्वती, प्राम के बोर (प्राम्रपुर) को देखकर कोयल गोर मूर्य को देखकर कमलिनी प्रसन्न होती है। जैसे सज्जन यात्मविद्या को, भ्रमर सुन्दर कमलों की पंक्ति को पौर चकोर पक्षी चन्द्रकला को देखते हैं, उसी प्रकार जयकमार ने भी प्रेमपूर्वक गौरवणं वाली सुलोचना को देखा। यहां पर जयकुमार प्रौर सुलोचना शङ्गार-रस के पालम्वन और पाश्रय हैं. विवाह-माडा, दोनों का सौन्दयं एवं गुण और एकान्न उद्दीपन विभाव है। कटाक्ष इत्यादि अनुभाव हैं, हर्ष, उत्कण्ठा इत्यादि व्यभिचारिभाव हैं। जयोदय महाकाव्य में शङ्गार रस के अन्य भी उद्धरण देखने को मिलते हैं। किन्तु विस्तारमय से इसके वे सभी उदाहरण नहीं दिए जा रहे हैं। शुङ्गार शान्त का प्रङ्ग-- जयोदय महाकाव्य में वरिणत शङ्गार रस सामन्त की भांति शान्त रस रूप सम्राट का सहायक सिद्ध होता है । जिस प्रकार नदी प्रपना क्षेत्र समाप्त होने पर समुद्र में विलीन हो जाती है, उसी प्रकार शृङ्गार-रस भी अपना कार्यक्षेत्र पार करके शान्त रस में ही अन्तर्भूत हो जाता है। यह पहल ही कहा जा चुका है कि पप्रधान एवं सहायक रसों को साहित्यशास्त्र में प्रङ्गरस कहा जाता है। प्रतः इस काव्य में शङ्गार रस भी शान्तरस का अङ्ग है। पीररस ____जयोदय महाकाव्य में वीरग्स की अभिव्यक्ति दो स्थलों पर होती है । दोनों ही स्थलों पर वीररस का प्राश्रय युद्धवीर जय कुमार है। इस रस का पालम्बन है -प्रतीति । पर्व कीति की अधिकार चे, उसका दम्भ, युद्ध के लिए हठ इत्यादि उद्दीपन विभाव हैं। युद्ध के लिए सेना साना इत्यादि मनुभाव हैं । पति, मति, गवं, तर्क रोमाञ्च इत्यादि व्यभिचारिभाव है। युद्धवीररस का प्रथम स्थल वहाँ है, जहाँ पर प्रकीति युद्ध करने की ठान लेता है, पर उसका क्रोध किसी प्रकार कम नहीं होता। ऐसे समय में जयकुमार प्रकम्पन को धयं बंधाकर युद्ध करने के लिए तत्पर हो जाते हैं, उनको देखा-देखी राजा प्रकम्पन भी अपने एक हजार पुत्रों के साथ युद्ध हेतु उत्साहसम्पन्न होकर १. जयोदय, १०।११८-१२०
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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