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________________ २०८ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक अध्ययन नदी पृथ्वी पर विस्तीर्ण, मनोहर मोर जयकुमार को प्रसन्न करने वाली थी । इस नदी के बहते हुए जल को देखकर जयकुमार को ऐसा लगता है मानों उनके तेज से पिचलती हुई बर्फ हो । XXX इस नदी के किनारे राजहंसों की पंक्ति सुशोभित थी। इसमें अनेक कमल थे। इस प्रकार लहरों से युक्त, जिनवाणी के समान यह नदी संताप को दूर करने वाली थी । कुशावास से युक्त यह नदी अपने सौन्दर्य से सीता की समता धारण करती थी । नदी के किनारे वृक्षों में स्थित तोते पथिकों के मन को आकर्षित करते थे । कमलिनियों से युक्त, पक्षियों से शब्दायमान कीर्ति की साक्षात्स्वरूप, यह नदी जगत्त्रय को जीतने की इच्छा करने वाले कानदेव की सेना के समान थी । कामदेव के द्वारा प्रज्वलित अग्नि से प्रस्फुटित होती हुई चिनगारियों के समान, इस नदी के कमलों के पराग के करण मानों कामदेव की प्राज्ञा से मनस्वियों के मन को सन्तप्त कर रहे थे । इस नदी के तट पर तिरछी गर्दन वाला बगुला प्राते हुए मनस्वियों के मन में श्वेत कमल को भ्रान्ति उत्पन्न कर रहा था। इस नदी के तट पर बने हुये शिविर दूर होने के कारण कलहंसों की उपमा को धारण कर रहे X X X जल पीने का इच्छुक घोड़ा, इस नदी के जल में पड़ते हुए अपने प्रतिबिम्ब को देखकर, पिपासा को भूलकर अपनी प्रिया को याद कर रहा था। इस नदी के कमलों से सुवासित जनों से हाथियों का झुंड स्नान कर रहा था। + + + इस नदी के निर्मल जल में पड़ती हुई अपनी छाया को देखकर एक हाथी उसे अपना प्रतिद्वन्द्वी गज समझकर उसे मारने के लिए जैसे ही से दौड़ा, वैसे ही वह नदी के जल में डूबकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। हाथी उस नदी के जल में अपने शरीर के सन्ताप को शान्त कर रहे थे। कोई हाथी इस नदी के जल से कमलनाल ले रहा था। कोई हाथी अपने सिंर पर श्रादर सहित धूलि धारण कर रहा था। हाथियों का झुण्ड इस नदी के जल में क्रीड़ा करके उसे व्याकुल कर रहा था । ऐसी पवित्र जलवाली इस नदी के समीप में राजा जयकुमार अपनी सेनासहित ठहरा । " १. जयोदय, १३।५३-११६ २. वही, १४।४२- ४६ ३. बही, २०१४५-७५ गङ्गानदी के वर्णन से सम्बन्धित तृतीय स्थल वह है, जहाँ जयकुमार की वनकोड़ा का वर्णन है । इसके अतिरिक्त कवि ने गङ्गा नदी का विस्तृत भौर सुन्दर air aहाँ पर किया है, जहाँ सुलोचना डूबते हुये जयकुमार की रक्षा करने के लिये मन्त्रों का जाप करती हुई गङ्गा नदी के जल में प्रविष्ट होती है । उपर्युक्त नबीवन से ही कवि के कौशल का परिचय सुधी पाठकों को हो जाएगा, इसलिए इन
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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